शिवजी का हिमाचल के गृह में वरवर्ग भोजन और शयन

             ब्रह्मा जी बोले – हे तात्, अब हिमालय ने सबको भोजन कराने के लिए अपने आंगन को सजाया। आंगन धो-लीप कर सुगन्धित वस्तुएं छिड़की गयीं। फिर अपने पुत्रों तथा अन्य शैलों द्वारा सब देवताओं को बुलवाया। विष्णु आदिक सब देवताओं को साथ ले शंकरजी भोजन करने चले। हिमालय ने सस्वागत सबको भोजन पर बैठाया। अनेक वस्तुएं परोसी गयीं, शिवजी को अग्रणी कर सभी देवता भोजन करने लगे। सभी पंक्ति बांधकर हास्य करते हुए पृथक्-पृथक् भोजन करने लगे। शिवजी के गणों की अलग और विष्णु आदि सभी देवताओं की अलग पंक्ति बैठी। चण्डी के गण अलग ही भोजन कर रहे थे।

             प्रसन्नता से हास-परिहास हो रहा था। सबने आनन्द से भोजन कर आचमन किया। विष्णु आदि देवता अपने स्थान को गये, किन्तु मैना की आज्ञा से सब स्त्रियां शिवजी को रनिवास में लिवा ले गयीं। मैनाक ने शिवजी को रत्न-सिंहासन पर बिठा कर अनेक बातें कीं तथा विचित्र भवनों और सज्जित शय्याओं को दिखलाया। पर्वतराज के उस सुन्दर रनिवास को देखकर महेश्वर प्रसन्न हो गये। फिर लीलापूर्ण भगवान ने वहां रत्नों के उत्तम पलंग पर शयन किया। उन्होंने वह रात्रि वहीं व्यतीत की। प्रातः सुन्दर वाद्यों के रव से शिवजी जागे। सभी देवता तथा अन्य लोग शिवजी का ध्यान करने लगे।

             उसी समय विष्णुजी की आज्ञा से धर्मराज ने शिवजी के पास जाकर उन्हें जनवासे में आने का निवेदन किया। तब मैना से आज्ञा ले आगे-आगे धर्म और पीछे-पीछे शंकरजी अपने जनवासे में आये। लोकाचार के अनुसार उन्होंने ऋषियों की वंदना की। विष्णु की वन्दना की। फिर स्वयं भी देवताओं और ऋषियों से वन्दित हुए। चारों ओर जय-जय शब्द होने लगा। बड़ा कोलाहल हुआ।

             इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का बावनवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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