शिवजी द्वारा सिन्दूर दान तथा कोहबर और स्त्रियों द्वारा हास-विलास वर्णन

             ब्रह्मा जी बोले – हे नारद फिर तो मैंने मुनियों को साथ लेकर शिवाज्ञा से पार्वती और शंकर के विवाह का शेष कार्य कराया। उनका अभिषेक कर ब्राह्मणों का दर्शन कराया। हृदय स्पर्शी कार्य कराया। बड़े उसाह से स्वस्तिवाचन हुआ। ब्राह्मणों की आज्ञा से शिवजी ने पार्वती के सिर में सिन्दूर लगाया। अब पार्वतीजी की अद्भुत शोभा हो गयी। शिवा-शिव एक आसन पर बैठे। फिर मैंने आज्ञा दी तो दोनों अपने स्थान पर आकर मिष्ठान्न का भोजन किया। लौकिक रीति से विवाह का सब कृत्य हुआ। शिवजी ने विधिपूर्वक आचार्य के लिये गो-दान किया। अनेकों मांगलिक वस्तुओं का दान हुआ। अनेकों रत्न और करोड़ों प्रकार के द्रव्य तथा सौ-सौ सोने की मुद्राएं ब्राह्मणों को दान दी गईं। सभी देवता और चराचर जीव मन में प्रसन्न हो जय-जयकार करने लगे। चारों ओर से मंगल-गान और आनन्दवर्धक बाजों की ध्वनि हो रही थी। मैं तथा विष्णु आदिक देवता अपने-अपने स्थान को चले गये। फिर हिमालय के नगर की स्त्रियां शिव और पार्वती को कोहबर स्थान में ले गईं। लोकाचार कर अनेकों उत्सव किया, फिर बस कृत्यों से निवृत्त हो सुन्दर घर में लिवा ले गईं। कुछ पुलकित ंसी हुई। जय-ध्वनि के साथ कटाक्ष करती हुई स्त्रियांे ने गांठ खोली। अपने घर में शिवजी को स्थित देख सब अपने भाग्य की प्रशंसा करने लगीं। नव-दम्पतियों को देखने के लिए स्त्रियों का भारी जमाव हो गया। लक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री, जाह्नवी, अदिति, शची, लोपामुद्रा, अरुन्धती, अहिल्या, तुलसी, स्वाहा, रोहिणी और वसुन्धरा और संज्ञा तथा रति प्रभृति देवताओं की स्त्रियां और देवताओं, नागों और मुनियांे की कन्याएं अगणित संख्या में आकर शिव के पास बैठ गईं तथा क्रमपूर्वक वे देवियां शिवजी से हंसी की बातें करने लगीं।

             कोई कहतीं- हे महादेव, इस समय प्राणप्यारी सती तो तुम्हारे समीप ही स्थित हैं, इनके चन्द्रमुख को देखकर अब तो विरह संकट का त्याग कीजिये। अब आप इस सती से आलिंगन कर अपना समय बिताइये। अब तुम्हारा इनसे वियोग न होगा। लक्ष्मी देवी ने कहा कि, हे देवेश। अब लज्जा को छोड़ इस पार्वती को गोद में बैठाइये जिसके लिये आपका दम घुटा जा रहा था। अब इसके प्रति क्या लज्जा है।

             सावित्री ने कहा- हे शम्भो, अब पार्वती को भोजन करा के आप भी भोजन कीजिये। इसमें कुछ भी दुःख न मानियेगा। फिर उनको आचमन करा कर आदर सहित पान खिलाइये।

             जाह्नवी ने कहा-अब कंघी लेकर अपनी प्राणेश्वरी के बालों को सुलझाइये। सुहागिन स्त्रियों के लिए इससे बढ़कर और कौन सा सुख है? इसी प्रकार सब श्रेष्ठ स्त्रियों ने शिवजी से हंसी की। तब शिवजी बोले-हे देवियो, आप सभी साध्वी जगत की माता हैं। मैं तो आपका पुत्र हूं। फिर आप मुझसे यह सब क्या कहती हैं। शंकरजी का ऐसा वचन सुन देवताओं की स्त्रियां लज्जित हो चुप साध पुतली के समान चित्रलिखित सी रह गयी और शिवजी ने मिष्ठान का जलपान कर ताम्बूल ग्रहण किया।

             इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का पचासवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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