नारद मैना संवाद(1)

             मैना बोलीं- हे मुनीश्वर, मैं उन शंकर भगवान को देखना चाहती हूं। उनका रूप कैसा है, जिनके लिए इतनी उत्तम तपस्या करनी पड़ी है। ऐसा कह कर हे नारद, वह मैना तुम्हारे साथ चन्द्रशाला में गयी। तब उनके इस अभिमान को जान कर अन्तर्यामी शिव ने मुझ ब्रह्मा और विष्णु से कहा कि हे भाइयों, तुम लोग अपने-अपने देवताओं को साथ लेकर हिमालय के द्वार पर हमसे पृथक होकर चलो। हम सबके पीछे चलेंगे। शिवजी के इस कथन को विष्णुजी ने सबको समझा दिया। सब देवता उसी प्रकार चले।

             हे नारद, तब महल के ऊपर अट्टालिका पर चढ़ी मैना सभी का दर्शन करने लगीं। देवताओं की सेना देख मैना साधारणतः प्रसन्न हुईं। तब पहले अनेक वाहनों पर चढ़े गन्धर्व आये, जो अनेक प्रकार के बाजे बजा रहे थे, जिनके हाथों में विचित्र पताकाएं फहरा रही थीं और साथ में अप्सरायें भी थीं। फिर उनके स्वामी वसु थे जिन्हें देखकर मैना बड़ी प्रसन्न हुई और बोली- क्या ये ही शिव हैं। हे नारद, तब तुमने मैना से कहा कि नहीं, ये पार्वती के पति शंकर नहीं हैं, ये तो उनके गण हैं। तब मैना ने सोचा कि जिसके गण इतने सुन्दर हैं तो न जाने वे शिवजी कैसे होंगे। पश्चात् मणिग्रीवादि बहुत से यक्ष आये, जिनकी शोभा गन्धर्वों से भी दूनी थी तथा मणिग्रीव को भी देखकर मैना ने कहा’ क्या यह पार्वती के स्वामी शिव हैं? तब तुमने कहा नहीं, ये तो शिवजी के सेवक हैं। इतने में अग्नि पहुंचे, उनमें मणिग्रीव से भी दूनी शोभा थी। तब मैना ने पूछा, क्या यही गिरिजा के पति शंकरजी हैं? तब तुमने कहा नहीं, इतने में नैऋत्य आये, जो यम से भी दुगुने सुन्दर थे। मैना ने पूछा क्या यह शिवजी हैं? तुमने कहा नहीं। इतने में वरुण आये, वह उनसे भी दुगुने सुन्दर थे।

             इसी प्रकार फिर यक्षराज कुबेर, ईशान, फिर देवराज इन्द्र, फिर चन्द्रमा, फिर सूर्य, फिर तेजपुन्ज भृगु और फिर देवगुरु वृहस्पति ये सभी एक दूसरे से बढ़ कर दुगुने तेजस्वी ऋषि-मुनि और देवता अपने गणों सहित वहां आये, जिन्हें देख-देखकर मैना ने तुमसे यही कहा कि हे नारद, क्या ये ही पार्वती के पति शंकरजी हैं तो तुमने कहा नहीं, ये अमुक-अमुक देवता हैं। तब अपने और ऋषियों सहित मैं धर्मपुन्ज ब्रह्मा वहां पहुंचा, जिसकी सभी स्तुति कर रहे थे। तब इस प्रकार मुझे वहां पहुंचा हुआ देख मैना ने अत्यन्त हर्षित होकर कहा, क्या पार्वती के यही पति होंगे। तब तुमने कहा नहीं। इतने में सर्व-शोभा सम्पन्न मेघ के समान श्याम वर्ण वाले चतुर्भुज रूप धारण किये विष्णु भगवान् वहां चले आये, जिनमें करोड़ों कामदेव के समान शोभा हो रही थी। वे पीताम्बर को धारण किये अपने तेज से प्रकाशमान थे, जिनके कमल के समान नेत्र थे और जो शान्त भाव से गरुड़ पर आरूढ़ थे। वे विष्णु शंखादि लक्षणों से युक्त एवं मुकुटादि से शोभित थे। उनके वक्षःस्थल में श्रीवत्स का चिन्ह अंकित था वे लक्ष्मी के पति भगवान् विष्णु अप्रमेय शोभाओं से युक्त थे।

             तब उन्हें इस सुन्दर रूप में देख मैना चकित होकर बड़े हर्ष से बोलीं कि निःसन्देह पार्वती के पति शंकर भगवान यहीं हैं। हे नारद, तब तुम कौतुकी ने मैना के ये वाक्य सुनकर कहा कि, ये भी शिव नहीं हैं, किन्तु ये विष्णु भगवान् हैं। पार्वती को वरण करने वाले शंकरजी तो इनसे भी कहीं बढ़कर हैं। मैं उनकी शोभा का वर्णन नहीं कर सकता। वे समस्त ब्रह्माण्ड के नायक, सर्वेश्वर और स्वयं प्रभु हैं। तब इस प्रकार नारद के वचनों को सुनकर मैना को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने समझ लिया कि पार्वती बड़ी भाग्यशालिनी है। मेरा अहोभाग्य है कि उसको इतने महान शोभाशाली देवताओं के नायक की प्राप्ति होगी। मैना ज्यों ही इस प्रकार के शब्दों में अपने भाग्य की प्रशंसा कर रही थी त्योंही अद्भुत रूप धारण किये भगवान शंकर वहां आ गये। मैना का गर्व नष्ट करने वाले विचित्र गण उनके साथ थे और वे अपने को माया से निर्लिप्त तथा निर्विकार दिखाते हुए आये थे। तब उन भगवान शंकर को आते हुए देखकर तुमने उन्हें प्रेमपूर्वक मैना को दिखाया और कहा कि हे सुन्दरी, देखो, ये वही भगवान शंकर हैं जिनके लिये पार्वती ने तपस्या की है। क्रमशः

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