गतांक से आगे, इकतालीसवां अध्याय, कथा-प्रसंग
नारदजी द्वारा हिमालय का निरीक्षण
ब्रह्माजी बोले – हे नारद, तब परस्पर विचार कर शिवजी से आज्ञा ले विष्णु ने तुमको हिमालय के घर भेजा। तुम हिमालय के घर गये। वहां जाकर तुमने विश्वकर्मा द्वारा रचित अपनी वह कृ़म मूर्ति देखी, जो उसने अपने द्वार पर बनवा रखी थी। ये देख तुम बड़े आश्चर्यित हुए, फिर तुमने हिमालय के बनाये हुए सभी सुवर्ण के कलश, रम्भा के स्तम्भों से शोभित वह मण्डप देखा जिसमें रत्नमय हजारों कदली के खम्भे खड़े थे और अत्यन्त अद्भुत वेदिका बनी थी। यह सब देखते हुए तुम हिमालय से मिले और पूछा कि क्या बारात सहित शिवजी अभी नहीं आये।
हिमालय ने कहा-अभी कोई समाचार नहीं है, परन्तु आशा है कि सर्वज्ञ प्रभु आते ही होंगे। आइये, तब तक चल कर आप भोजनादि से निवृत्त होइये। हे नारद। तब तुमने जाकर हिमालय के साथ भोजन किया और पुनः उसके मेरु आदि पुत्रों को साथ ले उसकी आज्ञा से शिवागमन का मार्ग देखने आये। तब तक इधर से समस्त देवताओं के उस वृहद् समूह एवं बारात सहित शिवजी तुमसे मार्ग में मिले। सब देवताओं और शिवजी ने भी तुमसे हिमालय के घर की रचना और उनके मन का भाव पूछा।
तुमने कहा- सब ठीक है। हिमालय आपके लिए अपनी कन्या पार्वती को देने के लिए बड़ी रचना एवं बनाव के साथ उत्सुक बैठा आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। यह सुन शंकरजी सहित सब देवता प्रसन्न हो हिमाचल के नगर के निकट जा पहुंचे।
इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का इकतालीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः