हिमालय के घर आमन्त्रितों का आगमन और

             नारद जी बोले – हे तात््, सप्तर्षियों के चले जाने पर हिमालय ने क्या किया, वह सब कृपा कर मुझसे कहिये।

             ब्रह्माजी बोले-हे मुनीश्वर, अब हिमालय ने अपने मेरु आदिक भाइयों को आमन्त्रित कर बुलाया तथा सब पुत्रों को बुला हर्षित हो पुरोहित गर्गजी द्वारा लग्न पत्रिका लिखवायी। फिर उसे स्वजनों के साथ शिवजी के पास भेजा तथा उनके साथ अनेक प्रकार की सामग्रियां भी भेजीं।

             उन्होंने कैलास में जाकर शिवजी को तिलक किया और वह पत्रिका भी शिवजी को अर्पित की। शिवजी ने भी उनका सम्मान किया। सब प्रसन्न हो शैलराज के पास आये। शैलराज को बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर हिमालय ने प्रसन्न हो अपने उन सब बन्धुओं को न्योता भेजा, जो उनके देश में स्थित थे। फिर शैलराज ने बहुत सा स्वर्ण संग्रह कराया और विवाह के योग्य सब सामग्रियां एकत्रित कीं। चावल, चूरा, गुड और लवण एकत्र करा कर दूध, घृत और दधि की बावलियां भरवा दीं। बहुत सा पिसा हुआ धान्य एकत्रित करा ढेर का ढेर लड्डु एकत्रित कराये। पूरी, कचौड़ी और शर्करा इकट्ठा किया, अमृत से इक्षुरस की बावड़ी भरवा दी। मक्खन तथा आसवों की भी बावड़ी भरवा दी तथा अत्यन्त स्वादिष्ट पकवानों के ढेर लगवा दिये। फिर बहुत से अमूल्य वस्त्र और सभी प्रकार के अभिलाषित व्यंजन तैयार कराये। अनेकों प्रकार के रत्न और मणि तथा सुवर्ण और चांदी के गहने तथा अन्य भी बहुत सी आवश्यक सामग्रियां प्रस्तुत करायीं। फिर एक मंगलदायक दिन में गिरिराज ने मंगलाचार प्रारम्भ किया और पर्वतों की स्त्रियां पर्वती का श्रृंगार संस्कार करने लगीं। नागरिक ब्राह्मणों की स्त्रियों ने लोकाचार किया। सुन्दर मांगलिक उत्सव आरम्भ हुआ। हिमालय ने प्रसन्न हो मंगलाचार किया। सबको शिवजी के आगमन की उत्कण्ठा होने लगी। आमन्त्रित बन्धुओं का समाज जुट गया। सभी अपनी स्त्रियों और पुत्रों सहित हिमालय के घर आये। सभी अनेकों प्रकार के वस्त्राभूषणों से युक्त थे। वे सभी अनेक पर्वत अपनी स्त्रियों और प्रजादिकों सहित बहुत सा मणि-रस लेकर शिवाशिव का विवाह देखने हिमालय के घर आये। शोणभद्रादिक सभी नद और अनेक नालों से युक्त सभी नदियां अपना दिव्य रूप धारण कर शिवजी का विवाह देखने आयीं। गोदावरी, यमुना, ब्रह्मपुत्र, त्रिवेणी शिवजी का विवाह देखने  हिमालय के घर आयीं। गंगा तो महा प्रसन्न हो अनेकों प्रकार के आभूषण धारण कर अपने दिव्य रूप से हिमालय के घर आयीं। नर्मदा, महाकोदा, सरिद्वरा, रुद्रकन्या- ये सभी नदियां बड़े प्रेम से शिवशिवा का विवाह देखने आयीं। इनके आगमन से हिमालय की दिव्य पुरी व्याप्त हो गई। ध्वजा और तोरणों से महाउत्सव होने लगा हिमालय ने यथायोग्य उत्तम स्थान देकर सबको सन्तुष्ट किया।

             इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का सैंतीसवा अध्याय समाप्त। क्रमशः

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