गतांक से आगे, तेइसवां अध्याय, कथा-प्रसंग
शिवजी द्वारा पार्वती को सान्त्वना
ब्रह्माजी बोले – हे मुनीश्वर, इस प्रकार शिवजी को पाने के लिए जब पार्वतजी ने बहुत दिनों तक कठोर तप किया तब भी शंकरजी प्रकट न हुए, तब अपनी स्त्री, पुत्र तथा मन्त्रियों के साथ हिमालय ने वहां आकर तप करने वाली परमेश्वरी पार्वती से कहा- हे पार्वती, रुद्र विरक्त हैं, इसी से तुमको दिखाई न पड़े, अतः इसके लिए तुम तप करके कुछ भी कष्ट न मानो और उठो, आओ घर चलो। तुम्हारा इस रुद्र से क्या प्रयोजन है, जो काम को पहले ही जला चुका है। निर्विकारी शिव तुम्हें ग्रहण करने नहीं आवेंगे। फिर तुम उनकी क्या प्रार्थना करती हो? जैसे आकाश में स्थित चन्द्रमा को कोई ग्रहण नहीं कर सकता, वैसे ही शिवजी दुर्गम हैं।
इसी प्रकार मैना सती ने भी पार्वती को समझाया और सत्य, मेरु, मन्दर और मैनाक सती ने भी पार्वती को समझाया तथा अन्य क्रौंचादिक पर्वतों ने भी अनेक हेतुओं से आतुर रहित पार्वती को समझाया। तब उन सबकी बातों को सुनकर पार्वती ने हंस कर कहा- हे तात, हे माता मैंने जो पहले कहा था क्या आप उसे भूल गये? मेरी तो यह प्रतिज्ञा है कि चाहे उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया है, या चाहे वे कितने ही विरक्त क्यों न हों, परन्तु मैं भक्तवत्सल शंकरजी को अपने तप के प्रभाव से प्रसन्न करूंगी। आप सब प्रसन्न हो अपने घर जाइये। मैं अपने तप से शंकरजी को यहां बुलाऊंगी। ऐसा अपने माता-पिता और भाईयों से कह कर पार्वतीजी चुप हो गई। विलक्षण बुद्धिवाले सुमेरु आदि पर्वत पार्वतीजी की प्रशंसा कर अपने घर चले गये। पार्वतीजी और कठोर तप करने लगीं। अब उनकी तपस्या से चराचर त्रिलोकी और देवता तथा असुर संतप्त हो गये। इन्द्रादिक देवता वृहस्पतिजी से विचार कर मुझ ब्रह्मा की शरण में आये। बड़ी स्तुति की। मैंने हृदय में शंकरजी का स्मरण कर पार्वती के तप पर विचार किया। विश्व को दग्ध जान मैं उसे विष्णुजी से कहने के लिए क्षीरसमुद्र में उनके पास गया।
विष्णु जी ने कहा- मुझे सब ज्ञात हैं। मैं आप सबको साथ ले शिवजी के स्थान पर चलता हूं। पार्वती के पाणि-ग्रहण के लिए महादेवजी से प्रार्थना करूंगा। इससे लोगों का कल्याण होगा। जैसे भी होगा पिनाकधारी को इसके लिए उद्यत करूंगा।
तब देवताओं ने कहा-हे महाराज। आप जाइये, पर हम लोग तो नहीं जायेंगे। क्योंकि प्रतापी शंकरजी के भयंकर क्रोध से कोई बच नहीं सकता। काम को उन्होंने भस्म ही कर दिया।
विष्णु ने कहा-नहीं, तुम लोग डरो नहीं। शंकर भगवान् तुमको भस्म नहीं करेंगे। सब लोग विष्णुजी के साथ पहले उस स्थान में गये, जहां पार्वती तप कर रही थीं। उन्हें साक्षात् सिद्धि स्वरूप समझ सबने उनकी प्रशंसा की। फिर शंकरजी के स्थान पर गये। देखा तो योगासन पर बैठे हुए परमेश्वर शंकर अपने गणों से परवेष्टित हैं। फिर तो सिद्धों, मुनियों और देवताओं तथा विष्णुजी सहित मैंने भगवान् शंकर को प्रणाम कर वेदों और उपनिषदों के सूत्रों से युक्त उनकी बड़ी स्तुति की।
इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का तेईसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः