तारकासुर के वध के लिए देवताओं का ब्रह्माजी से परामर्श

 ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद, जब सब देवताओं ने आकर मेरी स्तुति की तो मैं यथार्थ और हृदय को प्रिय लगने वाली उस देवस्तुति को सुनकर प्रसन्न हो बोला- हे देवताओं, तुम्हारा स्वागत है। कहो तुम लोग किस लिए आये हो? तब तारकासुर से भयभीत देवताओं ने अपना वह सब दुःख कहा जिससे वह त्रैलोक्य को पीड़ित कर रहा था।

 मैंने कहा- हे देवताओं, तारकासुर तो मेरे ही वचनों से बढ़ा है। मैं उसे कैसे मारूं? जिससे जो बढ़े उसी से उसका नाश होना उचित नहीं है। तुम्हारे इस कार्य को भगवान् शंकर ही कर सके हैं, परन्तु वह भी बिना प्रेरणा दिये नहीं कर सकते। यदि उनसे उत्पन्न पुत्र चाहे तो वह मार सकता है, अन्य नहीं। परन्तु उनका ऐसा पुत्र है कौन? जिसके लिए कहें। हां, इसका एक उपाय है जिसे हम सबको करना चाहिए। दक्ष की पुत्री सती जिसने अपना शरीर त्याग दिया था, वही अब हिमाचल के सकाम से मेनिका के गर्भ से उत्पन्न हुई है। उस कन्या को तुम जानते ही हो। यदि शिवजी उसको ग्रहण कर लें तो यत्न कर तुम लोग यह कार्य करा दो। फिर उसी से ऊर्ध्वरेता शिवजी द्वारा एक महाबलशाली पुत्र उत्पन्न करा कर अपना यह कार्य साधन करो। तब तक मैं उस दैत्य के स्थान पर जाकर उसको इस बुरे हठ से निवृत्त करता हूं। आप लोग अपने स्थान को जाइये।

हे नारद, देवताओं से ऐसा कह कर मैं तारकासुर के पास गया और उससे पृथ्वी पर जाकर राज्य करने को कहा। वह मेरी बात मान स्वर्ग को छोड़ पृथ्वी पर चला गया ओर शोणितपुर को अपनी राजधानी बनाया। उधर मेरा वाक्य मान कर देवताओं ने इन्द्र से जाकर सत्परामर्श किया।

इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का सोलहवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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