नारद और हिमालय का विचार-विमर्श

ब्रह्माजी बोले – हे नारद, एक समय जब तुम हिमालय के घर गये तो गिरिराज ने तुम्हारा सत्कार कर अपनी पुत्री को बुला उनकी प्रशंसा करते हुए तुमसे उसका गुण-दोष पूछा और यह भी पूछा कि इसका पति कौन होगा? तब तुम नारद दुर्गा देवी का मुख तथा हाथ देखकर बोले कि, हे गिरिराज, तुम्हारी यह कन्या सब लक्षणांे से युक्त आद्य कला है। यह अपने पति को सुख देने वाली तथा पितरों की कीर्ति को बढ़ाने वाली, परम साध्वी तथा आनन्द देने वाली होगी। इसके और सभी लक्षण तो शुभ हैं, किन्तु एक रेखा अति विलक्षण है, जिसका फल सुनो। योगी, नंगा, गुणरहित, अकामी, माता-पिता से रहित और अमंगल वेष वाला इसका पति होगा। हे नारद, तुम्हारे इन वचनों से उन दोनों पति-पत्नी को बड़ा दुःख हुआ, परन्तु जगदम्बिका दुर्गा हृदय में शिवजी को जान बड़ी प्रसन्न हुई। दुःखित हिमालय ने तुमसे उसका उपाय पूछा।

तब तुम कौतुकी नारद ने मीठे वचनों द्वारा हिमालय से कहा कि हे गिरिराज, मेरा वचन असत्य नहीं है। ब्रह्मा की लिखी रेखा असत्य नहीं होती। इसे वैसा ही पति प्राप्त होगा, परन्तु मैं इसका एक उपाय कहता हूं, जिसके करने से सुख मिलेगा। हे गिरिराज, शिवजी ऐसे हैं कि उनमें कुलक्षण भी सुलक्षण हो जाते हैं। प्रभु में दोष भी गुण ही होते हैं, जैसे सूर्य, अग्नि और गंगा हैं। तुम इस कन्या को शिवजी के लिये दान कर दो। आशुतोष शिवजी इसे ग्रहण कर लेंगे। इसकी सिद्धि के लिये यह तुम्हारी कन्या तप करे।

शिवजी ऐसे समर्थशाली हैं कि वे सम्पूर्ण प्रजा का नाश कर सकते हैं और ब्रह्मादिक उन्हीं के अधीन हैं। फिर तुम क्या करोगे? इसके और शिव के समान तो प्रेम किसी का न हुआ और न होगा। हे नरश्रेष्ठ, इस प्रकार ये दोनों मिलकर देवताओं का कार्य करेंगे, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है। इस कन्या से शिवजी अर्द्धनारीश्वर कहलायेंगे और यह अपने तप के प्रभाव से शिवजी के आधे शरीर को हरण कर लेगी। इसका गौरी नाम होगा और यह हरि तथा ब्रह्मादिक सब देवताओं की पूज्य होकर अत्यन्त ख्याति को प्राप्त करेगी। तुम इसे किसी दूसरे को मत देना और मेरी कही हुई बात को किसी और से न कहना। तुम्हारी यह पुत्री पहले दक्ष के घर में उत्पन्न हुई थी और सती नाम से रुद्र की प्रिया हुई। फिर पिता के यज्ञ में जाकर पति का निरादर देख कुपित होकर अपना शरीर त्याग दिया। अब वही अम्बिका भवानी तुम्हारे घर उत्पन्न हुई हैं, यहां इनका नाम पार्वती होगा और यह अवश्य ही शिव को प्राप्त होंगी, यह सुनकर हिमालय और मेनिका अपने कुटुम्बियों सहित सुखी हुए और उनका संशय निवृत्त हुआ। उधर कालिकाजी नारद जी के वचनों को सुनकर लज्जा से अपना मुंह ढंकती हुई हंसने लगीं। हे नारद, ऐसा कह कर तुम अपने लोक को चले गये और हिमालय भी प्रसन्न होता हुआ अपने घर को चला गया।

                    इति श्रीशिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का आठवां अध्याय समाप्त।  क्रमशः

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