पार्वती की बाल-लीला

ब्रह्माजी बोले – अब वह महाकाली भगवती एक छोटी-सी कन्या के रूप में रुदन करती हुई ऐसी लौकिकी गति को प्राप्त हुई कि बिना तेज के मैना की शय्या के चारों ओर प्रकाश फैल गया। वहां के दीपक हतकान्ति हो गये और कन्या का रुदन सुनकर वहां की स्त्रियां दौड़ कर उनके पास चली आयीं तथा कन्या को देखकर बड़ी प्रसन्न हुईं। शुद्ध सूचक ने जाकर गिरिराज को पार्वती का जन्म सुनाया। गिरिराज ने उसका ऐसा अमृत-वचन सुनकर छत्र छोड़ उसे सब कुछ देने को कहा। फिर अपने पुरोहित को साथ लेकर राजा वहां गये जहां कि कन्या का जन्म हुआ था। नील कमल के समान श्यामवर्ण वाली मनोहर और नेत्रों को सुखदायक ऐसी कन्या को देख गिरिराज के हर्ष की सीमा न रही। वे प्रसन्न हो अनेकों प्रकार के मंगलाचार और उत्सव के बाजे बजवाने लगे। हिमाचल ने अपने द्वार पर बड़ा उत्सव किया और भिक्षुओं को बड़ा दान दिया। फिर ब्रह्मादि देवताओं और मुनियों ने आकर सब संस्कार पूर्वक उनका काली, महाकाली इत्यादि नाम रखा।

पश्चात् कालिका देवी बड़ी शीघ्रता से हिमाचल के गृह में बढ़ने लगीं। चन्द्रमा की भांति सुन्दर रूप धारण करने लगीं। नगर के लोग पार्वती तथा कोई सुशीला और कोई बन्धुप्रिया भी कहने लगे। जब उनकी माता ने तप के लिये निषेध किया, तब से उनका नाम उमा पड़ गया। अब वह भगवती देवी गंगा के तट पर अपनी सखियांे के साथ गंेद खेलने लगीं। फिर अपने गुरु से विद्या पढ़ने लगीं। अल्पकाल में ही दुर्गा देवी सब विद्याओं की पारंगत हो गयीं। हे मुने, यह भगवती देवी का चरित्र मैंने तुम्हें सुनाया। अब इनका आगे का और चरित्र सुनो।

                    इति श्री शिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का सातवां अध्याय समाप्त।  क्रमशः

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