देवताओं को सान्त्वना

ब्रह्माजी बोले – जब देवताओं ने इस प्रकार स्तुति की तो कठिन दुःख विनाशिनी दुर्गा देवी देवताओं के समक्ष प्रकट हो गयीं। उनका अपूर्व तेज था। सभी देवता उनकी स्तुति करने लगे। विष्णु आदि सभी देवताओं ने जगदम्बा का दर्शन किया। सभी को उनकी कृपा प्राप्त हुई, सब आनन्द विभोर हो बार-बार उनको दण्डवत् करने लगे। फिर बड़ी स्तुति की और कहा कि  हे माता, क्षमा कीजियेगा। श्रुतियों के कहने के आधार पर तथा अपनी दीनतावश हम आपसे यह कहते हैं कि पूर्व समय में आप हर की प्यारी, दक्ष की पुत्री थी और फिर अपने शरीर को त्याग अपने लोक को चली गईं जिससे शिवजी बड़े दुःखी हुए थे और उस समय भी देवताओं का कार्य नहीं हो सका था। इसी कारण हम लोग व्याकुल होकर आपकी शरण में आये हैं। अब आप देवताओं का मनोरथ पूर्ण कीजिये। हे शिवे, अब सनत्कुमार के वचन को पूर्ण कीजिये। हे देवि, अब तुम पुनः पृथ्वी पर अवतार लेकर शिवजी की पत्नी बनो और अपनी अद्भुत लीला से देवताओं को सुखी बनाओ। इससे कैलासवासी शंकर जी भी प्रसन्न होंगे और सभी का दुःख दूर हो जायेगा।

देवताओं की इस प्रकार की प्रेम एवं भक्तिपूर्ण विचारधारा को सुनकर शिवा प्रसन्न हो गईं और उसके सब कारण विचार कर अपने प्रभु शिव को स्मरण करती हुई देवी उमा ने हंस कर देवताओं से कहा- हे ब्रह्मा, हे विष्णु, हे मुनियों और देवताओं, तुम्हारे दुःख दूर होंगे। इसमें सन्देह नहीं कि मैं प्रसन्न हूं। मेरा चरित्र तो तीनों लोकों को सुख देने वाला है। मेरे द्वारा ही दक्ष को मोह प्राप्त हुआ है। मैं अवश्य ही पृथ्वी पर पूर्ण अवतार लूंगी। इसके और भी कारण हैं। पहले हिमालय और उनकी पत्नी ने मेरी सेवा की है। अब भी वे भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करते हैं, इसलिये मैं हिमालय के घर प्रकट होऊंगी, जिससे तुम्हारे सब दुःख दूर हो जायेंगे। शिव की लीला बड़ी अद्भुत है इसलिये मैं उन्हीं की पत्नी होऊंगी। मै जानती हूं कि जब से मैंने शरीर छोड़ा तब से मेरे पति मेरी चिन्ता में दिगम्बर हो गये हैं और मुझ सती के वियोगी महेश्वर आज भी मेरा वियोग सहन नहीं कर पा रहे हैं। मेरे कारण उन्होंने कुवेष धारण कर लिया है, गले में अस्थियों की माला पहन ली है और कभी शान्ति नहीं पाते तथा निरन्तर जागते ही रहते हैं। वे रुद्र मेरा पाणि-ग्रहण करना चाहते हैं, अतः मैं हिमालय के घर जाकर अवतार लूंगी। मैं हिमालय की पत्नी मैना को सांसारिक गति दिखाऊंगी। मैं अपनी भक्ति से रुद्र-प्रिया होकर महातप के द्वारा निःसन्देह देवताओं के कार्य करूंगी। मेरा यह वचन सत्य है। अब तुम सब देवता अपने स्थान को जाओ और शिवजी का भजन करो। उनकी कृपा से निःसन्देह तुम्हारे सब दुःख दूर होंगे। कृपालु शिवजी की कृपा से सब मंगल ही होगा और औरं उनकी पत्नी होकर तीनों लोकों में वन्दनीय एवं पूज्य होऊंगी।

यह कह कर वह विश्वमाता अपने लोक को चली गईं। देवता भी अपने धाम को चले गये। दुर्गा का यह चरित्र जो ध्यान से पढ़ेगा और सुनेगा उसकी सब कामनाएं पूर्ण होंगी। इति श्रीशिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का चौथा अध्याय समाप्त I इति क्रमशः

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *