देवताओं की स्तुति

नारदजी बोले – हे विष्णु के सत्गुरु, हे परम बुद्धिमान और वक्ताओं में श्रेष्ठ ब्रह्माजी, फिर इसके आगे क्या हुआ? वह मुझसे कहिये। यह तो आपने बड़ी अद्भुत कथा कही है। मैना की पहली गति तो बड़ी शुभ है। मैंने उनका विवाह तो सुन लिया, अब उनका परम चरित्र कहिये। पार्वती मेनिका से कैसे उत्पन्न हुईं और उन्होंने दुःसह तप कर शिवजी को वर रूप में कैसे प्राप्त किया। भगवान शंकर के इस यश का वर्णन कीजिये।

ब्रह्माजी बोले- हे मुनि, जब मैना का विवाह कर हिमालय पर्वत अपने घर आ गया तब तीनों लोकों में बड़ा उत्सव मनाया गया। हिमालय के घर भी बड़ा उत्सव हुआ। पश्चात् हिमालय प्रसन्न हो मेनिका के साथ विभिन्न सुख दायक स्थानों में जाकर विहार करने लगा।

इसी समय सब देवताओं को साथ लिये विष्णुजी हिमालय के पास गये। हिमालय ने अपने को सब प्रकार से बड़ा भाग्यशाली जाना और उनका बड़ा सत्कार किया। उसने कहा, आज मेरा जन्म लेना सफल हो गया। आज मेरा बड़ा तप, ज्ञान और सभी कार्य सफल हो गये, जो इस प्रकार आप लोगों को एक ही साथ अपने घर पर आया हुआ देख रहा हूं। कहिये मेरे योग्य क्या सेवा है? यह सुन हरि आदि देवताओं को विश्वास हो गया कि अब मेरा कार्य सिद्ध होगा। उन्होंने हिमालय से कहा-हे महाप्राज्ञ, जो पहले जगदम्बा उमा दक्ष की कन्या शिवजी की पत्नी हुई थीं और जिन्होंने अपने पिता के अनादर से अपने प्रण का स्मरण कर अपना शरीर त्याग दिया था वह सारी कथा आपको भी ज्ञात है, इसीलिये हम लोग यहां आये हैं। ब्रह्माजी कहते हैं कि हरि आदि के ऐसा कहते ही हिमालय ने ‘तथास्तु’ अर्थात् ऐसा ही हो कह दिया। तब सब देवता शंकर की पत्नी उमा की शरण में गये और एक अच्छे स्थान में बैठकर जगदम्बिका का स्मरण करने लगे। उन्होंने दण्डवत् कर उन देवी को प्रसन्न करने के लिये कहा, हे उमा, हे देवि, हे माता, आप सर्वदा शिव-लोक निवासिनी और सर्वदा ही शिव की प्रिया हैं, हे दुर्गे, हे महेश्वरि, हम सब आपको प्रणाम करते हैं इत्यादि, इस प्रकार उनकी बड़ी स्तुति की और कहा कि, हे मां, तुम हम पर प्रसन्न हो जाओ। तुम्हीं जगत की स्थिति और पालन करने वाली हो। इस प्रकार उमा, सती, जगदम्बा भवानी की स्तुति करते हुए सभी देवता उनके दर्शनों की परम लालसा से वहां खड़े हो गये।

                     इति श्रीशिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का तीसरा अध्याय समाप्त।  क्रमशः

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