गतांक से तृतीय पार्वती खण्ड प्रारम्भ पहला अध्याय कथा-प्रसंग
हिमालय का विवाह
नारद जी बोले – हे ब्रह्मन्, सती अपने पिता के यज्ञ में शरीर त्याग कर पार्वती की कन्या कैसे हुईं और उन जगन्माता ने तप कर शिवजी को कैसे प्राप्त किया? यह मुझे कृपा कर बतलाइये।
ब्रह्माजी बोले- हे मुनि शार्दूल, अब तुम परम पावन शिव-पार्वती जी के सुन्दर चरित्र को सुनो। जब दाक्षायणी देवी ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाकर अपना शरीर त्याग दिया, तब उन्होंने हिमालय की प्यारी मेनिका के घर जन्म लेने का विचार किया। क्योंकि शिवलोक में स्थित मेनिका ने सती देवी के लिये आराधन किया था। इसी से सती ने भी ऐसा ही संकल्प किया। समय आने पर वही देवी अपना वह शरीर त्याग मेनिका की पुत्री बन गयी। तब इस जन्म में उन सती देवी का नाम पार्वती हुआ और उन्होंने नारदजी का उपदेश ग्रहण कर अत्यंत कठिन तप कर शिवजी को प्राप्त किया।
नारद जी बोले-हे ब्रह्मन्, अब उस मेनिका की उत्पत्ति, विवाह और चरित्र मुझे सुनाइये। वह मेनिका धन्य थी जिनकी सती पुत्री हुईं।
ब्रह्माजी बोले – हे नारद, अब तुम पार्वती जी की माता का वह परम पवित्र चरित्र सुनो, जो बड़ा ही भक्तिवर्द्धक है। उत्तर दिशा में हिमाचल नाम का एक महान राजा था, जो अपने श्रेष्ठ पर्वत की सब समृद्धियों से युक्त और बड़ा ही तेजस्वी था। उस पर्वत का बड़ा ही दिव्य रूप है और जो सर्वांग सुन्दर, विष्णु का रूप, सन्तों का प्रिय और शैलराज के नाम से प्रसिद्ध है। उसे हिमालय भी कहा जाता है और उस पर्वत के जंगम और स्थिर दो भेद हैं। उसी शैलराज ने अपने कुल की स्थिति और धर्मवर्द्धन के लिये अपना विवाह करने की इच्छा की। तब उसी इच्छा के होते ही समस्त देवतागण पितरों के पास गये और बोले कि यदि आप सभी लोग अपना कर्तव्य पालन करना चाहते हैं और यह चाहते हैं कि देवताओं का कार्य हो तो आप मंगलरूपिणी कन्या मेनिका का विवाह हिमालय पर्वत के साथ कर दीजिये इससे सभी का भला होगा और देवताओं के पद-पद पर होने वाले दुःख और हानि का नाश होगा।
ब्रह्माजी कहते हैं-देवताओं का यह कथन पितृगणों को अच्छा लगा और उन्हांेने अपनी पुत्रियों के शाप की बात याद कर अपनी पुत्री मेनिका का विवाह हिमालय के साथ कर दिया। उस विवाह में बड़ा उत्सव हुआ और हरि आदि सभी देवता और मुनि हिमालय के विवाह में सम्मिलित हुए। फिर विवाह का उत्सव समाप्त होने पर सभी देवता और मुनीश्वर शिव-शिवा का ध्यान कर अपने धाम को चले गये। हिमालय उत्तम पत्नी पाकर बड़े आनन्दित हुए। हे मुनि यही हिमालय और मेनिका का विवाह है, जो मैंने तुमसे कहा। अब इसके आगे और क्या सुनना चाहते हो, वह कहो।
इति श्रीशिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का पहला अध्याय समाप्त। क्रमशः