गतांक से तैतीसवां अध्याय कथा-प्रसंग
वीरभद्र और महाकाली का सैन्य जुटाव
ब्रह्मा जी बोले- जब शिवजी को प्रणाम कर वीरभद्र दक्ष का यज्ञ विध्वंस करने चला। शिवजी ने प्रलयाग्नि के समान और भी करोड़ों गणों को उसके साथ किया। वे सब प्रबल गण अत्यन्त कुतूहल के साथ वीरभद्र के आगे-पीछे होकर चले। उसमें वीरभद्र के ही समान हजारों पार्षद तो साक्षात् रुद्र स्वरूप ही थे। वीरभद्र शिवजी का ही रूप धारण कर एक ऐसे रथ पर चढ़ कर चला जो चार सौ हाथ लम्बा था जिसे दस हजार सिंह वहन कर रहे थे एवं बहुत से सिंह और हाथी आदि उसके सहस्रों पार्श्व रक्षक थे।
जब इस प्रकार वीरभद्र चले तो शीघ्र ही कल्पवृक्षों ने बहुत से फूल बरसाये और समस्त गणों ने उनकी स्तुति की। फिर काली, कात्यायनी, महेशानी, चामुण्डा, मुण्डमर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, बलि और वैष्णवी इन नौ दुर्गाओं ने भी दक्ष को मारने के लिये अपने भूत-गणों के साथ प्रस्थान किया। उनके (वीरभद्र और महाकाली के) सब गणों की संख्या करना यहां अशक्य है। केवल श्रीमान शंकर के गणों को कहता हूं, जो भृंगी, कीट, अशनि और लामक गण चौंसठ हजार करोड़ सेना लेकर चले थे। उस समय भेरी, शंख, जटाहर, मुखों तथा श्रृंगों के अनेक प्रकार के शब्द करते हुए और अनेकों प्रकार के बाजे बजा रहे थे। इस प्रकार वीरभद्र की यात्रा में अनेकों प्रकार के शुभ शकुन हुए।
इति श्रीशिव महापुराण द्वितीय सती खण्ड का तैतीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः