ब्रह्मा-काम संवाद

गतांक से आगे
नवां अध्याय
कथा-प्रसंग

     ब्रह्माजी कहते हैं कि वहां जाकर काम ने प्राणियों को मोहित करने वाला अपना प्रभाव फैलाया। वसन्त ने भी उसका साथ दिया। रति के साथ कामदेव ने शिवजी को मोहित करने के लिए अनेकों प्रकार के यत्न किये जिससे सब जीव तो मोहित हो गये, परन्तु गणेशजी सहित शिवजी वश में न आये। उनके सारे प्रयत्न व्यर्थ हो गये और वह मद से रहित हो अपने स्थान को गया। तब उसने उदास भाव से मेरे पास आ प्रणाम कर मुझसे कहा, हे ब्रह्मन्, मैं शंभु को मोहने योग्य नहीं हूं  और किसी की शक्ति नहीं है जो उन्हें मोहित कर सके। तब उसकी ऐसी बहुत-सी बात सुनकर मैं चिन्तामग्न हो गया और बड़े दुःख की श्वांस लेने लगा। इससे बहुत से भयंकर बली गण प्रकट हो गये। उन्होंने कोलाहल कर असंख्यों की संख्या में पटह आदि अनेकों वाद्यों को बजाना और ‘मारो काटो’ शब्द करना आरम्भ किया और मुझे भी मारने-काटने दौड़े। तब वहां मेरे सम्मुख स्थित काम ने उनको हटाया और मुझसे कहा कि, हे प्रजानाथ, इन भयंकर विकराल वीरों को आपने कहां से उत्पन्न कर दिया। इनका क्या काम है और ये कहां रहेंगे? न हो तो इनको मेरे हवाले कीजिये। यह सुनकर मुझ ब्रह्मा ने उन्हें कर्म में नियुक्त कर दिया। काम से कहा कि ये उत्पन्न होते ही ‘मारय-मारय’ करने लगे इससे इनका नाम ‘मार’ हुआ। हे काम, ये सर्वदा तुम्हारे वशवर्ती रहेंगे। तुम्हारी सहायता करना ही इनका मुख्य कार्य होगा और ये सर्वदा ज्ञानियों के ज्ञान-मार्ग के बाधक हुआ करेंगे। मेरा यह वचन सुन कर रति और काम कुछ प्रसन्न हुए। तब मैंने उनसे कहा कि अब तुम फिर शिवजी को मोहत करने के लिये जाओ। काम ने कहा, मैं आपकी आज्ञा को अपना गौरव समझ कर जाऊंगा तो अवश्य, किन्तु यह निश्चित है कि उनका मोहन नहीं होगा और मुझे भय है कि कहीं वे मेरे शरीर को भी न भस्म कर दें।
    यह कह कर काम अपने वसन्त, रति और मार गण को साथ लेकर शिवजी के स्थान में गया और उन्हें मोहित करने के लिये बहुत से उपाय किये किन्तु वे परमात्मा शिव मोहित न हुए। फिर वह काम लौट कर मेरे पास चला आया और गर्व तथा हर्ष से रहित निरुत्साह हो मार गणों साहित मुझे प्रणाम कर मेरे समीप में आ बैठा और बोला कि हे ब्रह्माजी, यदि आपकी यही इच्छा है तो शिवजी को मोहित करने का कोई दूसरा उपाय कीजिये। मैं अपने स्थान को चला जाता हूं। यह तो कहिये कि शिवजी ने कृपा कर मेरे शरीर को नहीं जलाया।
     इति श्री शिवमहापुराण द्वितीय सती खण्ड काक नवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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