कुबेर और शिव का सखा भाव वर्णन

कुबेर और शिव का सखा भाव वर्णन
     ब्रह्माजी बोले, हे नारद, अब तुम वह आख्यान सुनो जिस प्रकार कुबेर कैलास पर्वत पर तप करने आया और उसके तपोबल से शिवजी वहां पहुंचे। कुबेर को कठिन तप करते देखकर ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न रुद्र शिवजी की इच्छा से वहां जाने के लिये उत्सुक हुए और जोर-जोर से अपना डमरू बजाने लगे जिसकी ध्वनि त्रैलोक्य में व्याप्त हो गयी। विष्णु और ब्रह्मादिक सब देवता तथा मुनि और वेद-शास्त्र और सिद्ध लोग भी मूर्त होकर वहां पहुंचे। साथ ही, असंख्यों गणों सहित अपनी लाखों करोड़ां की सेना के साथ शिवजी, ब्रह्मा, विष्णु सहित बड़े प्रेम से रुद्र रूप शिवजी के दर्शनार्थ वहां पहुंचे। शिवजी को आते देखकर महात्मा कुबेर ने आदर से उठकर भक्तिपूर्वक अनेक प्रकार की भेंटां से परिवार सहित उनकी पूजा की और आलिंगन  कर अलकापुरी के समीप ही ले जाकर निवास कराया। फिर शिवजी ने विश्वकर्मा को बुलाकर उस कैलास पर्वत पर अपने भक्तों और अनुचरों के लिये स्थान बनाने की आज्ञा दी। विश्वकर्मा ने अनेकां प्रकार के स्थान बना दिये। 
     इस अवसर पर हरि की प्रार्थना से शिवजी बहुत प्रसन्न हुए। फिर कुबेर पर कृपा कर शिवजी कैलास पर्वत पर गये और एक शुभ मुहूर्त देखकर उसमें प्रवेश किया। विष्णु आदिक देवता आनन्दित हुए तथा मुनि और सिद्धगणों ने भी आनन्द से शिवजी का अभिषेक किया और अनेक प्रकार की सामग्रियां से उनकी पूजा की। ऊपर से मांगलिक पुष्प-वृष्टि हुई। अप्सरायें नाचने-गाने लगीं। सुखदायक जय और नमः शब्द होने लगा। जब शिवजी सिंहासन पर बैठे तो विष्णु आदि देवताओं ने अलग-अलग स्तुति की। शिवजी ने सबकी कामनाएं पूर्ण कीं। जब सब देवता अपने-अपने स्थान को चले गये तब शिवजी ने मुझको और विष्णु को आसन पर बिठाकर बहुत बार प्रीति पूर्वक सम्बोधन कर कहा कि, हे हरि, हे ब्रह्मा, तुम दोनों मेरे अत्यन्त प्रिय हो। अब तुम लोग निर्भय होकर अपने लोक को जाओ। मैं तुम्हारा सुखदाता हूं और सदैव तुम्हारी देख-भाल करता रहूंगा। हम दोनों अपने-अपने स्थान को चले आये।
     उसी समय प्रसन्न होकर शिवजी ने कुबेर के पास आकर उनका हाथ पकड़ कर कहा कि, हे मित्र, मैं तुम्हारी मित्रता के वशीभूत हूं। तुम भी अपने स्थान को जाओ। हे निष्पाप, मैं तुम्हारा सहायक हूं, कुबेर जी शिवजी की आज्ञा से अपने स्थान को आये। शिवजी कैलास पर अपने गणों सहित ध्यान में तत्पर हो निवास करने लगे। वहां रहते हुए उन्होंने अनेकों विहार किया। कितने ही दिन तक पत्नी के बिना ही परमेश्वर शिव ने अपना समय बिताया। फिर दक्ष की पत्नी से उत्पन्न सती से विवाह किया। फिर तो महेश्वर दक्ष-पुत्री सती के साथ विहार करने लगे।  लोकाचार में परायण होकर शिवजी और सुखी हुए। हे मुनियो, यह रुद्रावतार और शिवजी का कैलास पर आगमन तथा उनकी कुबेर के साथ मित्रता मैंने वर्णन की। अब उनकी वह लोक-लीलाएं वर्णन करूंगा जो सर्वकाम फलदायक हैं। जो इस कथा को शान्त चित्त से पढ़ेगा और सुनेगा उसे संसार में सब भोगों की प्राप्ति होकर परलोक में मुक्ति प्राप्त होगी।
     इति श्रीशिवमहापुराण की दूसरी रुद्र संहिता का बीसवां अध्याय सम्पूर्ण हुआ तथा प्रथम सृष्टि खण्ड समाप्त। क्रमशः

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