यमदूतों से शिवगणों की वार्ता

    ब्रह्माजी ने कहा, हे नारद, जब यह समाचार दीक्षित के पुत्र को मिला तो वह गृह त्याग कर कहीं दूर जाकर अपने भविष्य की चिन्ता करने लगा। कभी माता की ममता का स्मरण, कभी पिता की धर्मज्ञता और कभी अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करने लगा। निदान भूख-प्यास से पीड़ित सन्ध्या के समय एक शिव-मन्दिर के पास जाकर बैठ गया, जहां शिवरात्रि के व्रत में शिवजी के पूजन हेतु सपरिवार समस्त सामग्रियों से युक्त होकर आया। जब वह सब प्रकार की शिव की पूजा कर चुके और घर से लाये हुए पकवान आदि उन पर चढ़ा चुके तब भूख से पीड़ित यज्ञदत्त का पुत्र उसे कैसे ग्रहण करे, इसके लिये वह मन्दिर की आड़ में छिपकर सब देखता रहा, जब वे लोग पकवान्नादि चढ़ा कर किन्चित विश्राम करने लगे तो उनकी आंखों में झपकी आते-आते यज्ञदत्त का पुत्र धीरे से उठ कर मन्दिर में प्रवेश कर गया और जो कुछ भोग चढ़ा था सब लेकर चम्पत हो गया। किन्तु उसी क्षण उसके पैर की धमधमाहट सुन कर वे सोये हुए लोग जाग उठे और चिल्लाते तथा दौड़ते हुए उसका पीछा करने लगे। नगर के लोगों ने भी उसे खदेड़ा और नगर के रक्षकों ने तो उस भागते हुए को ऐसा मारा कि वह क्षण भर में ही अन्धा हो गया। अभी तक उसे उस नैवेद्य को खाया भी नहीं था कि इतने में यम के दूतों ने आकर उसे बांध लिया, परन्तु ज्यों ही वे उसे ले जाना चाहते थे कि दिव्य विमान पर बैठे हुए शूलधारी शिवजी के पार्षद भी उसे लेने के लिये वहां आ गये और बोले- कि, हे यमराज के गणों, अब इस परम धर्मात्मा ब्राह्मण को छोड़ दो, क्योंकि इसमें कोई पाप शेष नहीं रहा। यम के दूतों ने शिवजी के पार्षदों को नमस्कार करके कहा - नहीं, आप नहीं जानते, यह बड़ा पापी और अपने धर्म-कर्म से नष्ट, कुल के आचार से हीन और अपने पिता का बड़ा शत्रु है। यह देखो, इसने शिवजी का निर्माल्य भी चुराया है। शिव-निर्माल्य के भक्षक और उल्लंघन करने वाले को तो छूने से भी पाप लगता है। परन्तु धर्म में जैसी जानकारी आप सबको है वैसी हम सबको नहीं है। अतएव, यदि इसमें कुछ धर्म का लेश हो तो हमें भी सुनाइये।
     तब शिवजी के किंकर उन पार्षदों ने कहा कि हे यमदूतो, इस यज्ञदत्त के पुत्र ने जहां बहुत से पाप किये हैं वहीं इसने पाप रहित धर्म भी किये हैं। जैसे लिंग के सिर पर गिरती हुई दीपक की छाया का इसने निवारण किया और रात्रि में इसने अपना वस्त्र फाड़ कर दीपक में बत्ती डाली। प्रसंगवश इसने शिव पुराण का श्रवण किया तथा ऐसे ही और भी कार्य किये हैं। व्रत रह कर इसने शिवजी की पूजा का दर्शन किया, स्थिर चित्त से द्वार पर बैठा रहा। इस कारण यह अभी हमारे साथ शिवलोक को जायेगा और कुछ दिनों तक वहां रहेगा फिर पाप रहित होकर यह कलिंग देश का राजा होगा, क्योंकि यह ब्राह्मण श्रेष्ठ निश्चय ही शिव का प्रिय है। तुम लोग प्रसन्न हो, अपने लोक को जाओ।
     ब्रह्माजी कहते हैं कि यह सुनकर यम के दूत जहां से आये थे वहीं अपने लोक को चले गये। सब समाचार यमदेव से कहा, यमराज ने भी हर्ष से उनकी बात स्वीकार की। फिर तो उन यमदूतों से छुड़ाया गया वह ब्राह्मण शिवगणों द्वारा शिवलोक को गया और वहां शिव-पार्वती की सेवा से लौटकर कलिंग देश का राजा हुआ। वहां उसका नाम अरिन्दम पड़ा। उसने अपने राज्य में शिव भक्ति का अच्छा प्रचार-प्रसार किया और शिव मन्दिर में रत्नों के दीपक जलाते रहने से वह अलकापति हुआ। शिवजी की थोड़ी भी सेवा बहुत फलदायक हुई, यज्ञदत्त के पुत्र गुणनिधि का यह चरित्र जो सुनेगा उसकी सब कामनाएं पूर्ण होंगी और उसे बड़ा सन्तोष प्राप्त होगा। हे ऋषियो अब जिस प्रकार देवताओं के सिरमौर शिवजी ने कुबेर से मित्रता की वह आख्यान भी सुनो।
     इति श्री शिव महापुराण द्वितीय रुद्र संहिता का अट्ठारवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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