अथ द्वितीय रुद्र-संहिता प्रारम्भ
पहला अध्याय
कथा-प्रसंग
परम पौराणिक सूतजी से शौनकादि ऋषियों की वार्ता
श्री व्यासजी ने कहा- जो विश्व की उत्पत्ति, पालन और लय के एकमात्र कारण हैं, उन अनन्त कीर्ति वाले, गौरीपति, अचिन्त्य रूप वाले, निर्मल बोधस्वरूप, मायाश्रित किन्तु माया रहित शिवजी को मेरा नमस्कार है।
श्री व्यासजी ने कहा कि शिवजी जगत के पिता और शिवाजी (पार्वतीजी) माता तथा उनके पुत्र श्री गणेशजी को नमस्कार कर मैं इस संहिता का वर्णन करता हूं।
एक समय नैमिषारण्य में जब समस्त शौनकादि मुनियों ने परम भक्ति से सूतजी से यह प्रश्न किया कि शिवजी का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप क्या है और पार्वतीजी सहित उनका दिव्य चरित्र क्या है? लोक के कल्याणकर्ता श्री शंकरजी किस प्रकार प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न होने पर क्या फल देते हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये तीनों देवता शिवजी के अंग से उत्पन्न हुए हैं और इनमें महेश ही पूर्णांश हैं तथा शिव-पार्वती का आविर्भाव और विवाह कैसे हुआ? उनकी उन सब लीलाओं को हमें बतलाइये, तो परम पौराणिक सूत जी ने कहा - मुनीश्वरों इस उत्तम प्रश्न के लिए आप लोगों को धन्यवाद है, क्योंकि आप शिव निष्ठों ने शिवजी की कथा सम्बन्धी तीन बड़े उत्तम प्रश्न किये हैं, जो सुनने वालों को गंगाजल की भांति पवित्र करने वाले हैं। आपके प्रश्न के अनुसार शिवजी के चरित्र को यत्नपूर्वक मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहता हूं, आप लोग आदर सहित सुनिये। जैसा प्रश्न आपने किया है ऐसा ही शिवजी से प्रेरित हुए श्री नारद जी ने अपने पिता ब्रह्माजी से यही प्रश्न पूछा था। तब शिव भक्त ब्रह्माजी ने प्रसन्न हो अपने पुत्र नारद जी को हर्षित करते हुए शिवजी का यश वर्णन किया था।
श्री व्यासजी कहते हैं कि जब सूतजी ने ऐसा कहा तो उनके इस वाक्य को सुनकर वे सब ब्राह्मण कुतूहल सहित उस संवाद को इस प्रकार पूछने लगे कि हे सूतजी, हे महाभाग, हे शिवभक्तों में उत्तम बुद्धि वाले, यह ब्रह्मा और नारद जी का संवाद कब हुआ था, जिसमें भव-बन्धन से छुड़ाने वाली भगवान् शिव की लीला वर्णित है। हे तात, उनके प्रश्न के अनुसार ही हमें वह सब प्रेम से सुनाइये।
इति श्री शिवमहापुराण द्वितीय #रुद्रसंहिता पहला अध्याय समाप्त। क्रमशः