पार्थिव पूजन के प्रकार

               सूत जी बोले - अब मैं वैदिक भक्तो के लिए पार्थिव पूजन का वह विधान कहता हूं जो उन्हंे भुक्ति-मुक्ति को देने वाला है। वेद सूत्रों की विधि से स्नान एवं विधिपूर्वक संध्याकर, फिर ब्रह्म यज्ञ कर पूछे तर्पण करे तथा सम्पूर्ण नित्य कर्मों को करके शिव स्मरण पूर्वक भस्म तथा रुद्राक्ष तो पहले ही धारण कर लेवे। फिर भक्ति पूर्वक श्रेष्ठ पार्थिव लिंग की वेदोक्त विधि से भली प्रकार पूजन करे। किसी नदी के तट पर, पर्वत पर, जंगल में, शिवालय या पवित्र देश में पार्थिव पूजन करना उचित है। शुद्ध देश में उत्पन्न हुई मिट्टी को प्रयत्न से लाकर सावधान हो शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। मृत्तिका को जल से शुद्ध कर धीरे-धीरे उसके पिण्ड बनावे, फिर वेद-मार्ग द्वारा सुन्दर पार्थिव लिंग की रचना करें। ‘नमः शिवाय’ इस मंत्र से पूजन सामग्री का शोधन करे। पुनः ‘भूरसि’ इस मंत्र से क्षेत्र सिद्ध करे। ‘आयोष्मान’ से जल का संस्कार करे। ‘नमस्ते रुद्र’ इस मंत्र से स्फटिकबन्ध करे। ‘नमः शम्भवाय’ इस मंत्र से क्षेत्र की शुद्धि करे और ‘नमः’ पूर्वक पंचामृत से प्रोक्षण करे। ‘नमस्ते रुद्र’ इस मंत्र से स्फटिबन्ध करे। ‘नमः शाम्भवाय’ इस मंत्र से क्षेत्र की शुद्धि करे और ‘नमः’ पूर्वक पंचामृत से प्रोक्षण करे। ‘नमो नीलग्रीवाय’ इस मंत्र से लिंग की प्रतिष्ठा करे तथा ‘एत्तरुद्राय’ मंत्र से भक्ति पूर्वक रमणीय आसन दें। फिर ‘मनोमहन्ताम्’ इस मंत्र से आवाहन कर ‘या ते रुद्र’ इस मंत्र से उपवेश (स्थिर) करे। ‘यामिषुम्’ इस मंत्र से शिवजी का न्यास करे। ‘अयोचदिति’ इस मंत्र से प्रेमपूर्वक अधिवास करे तथा ‘असौजी’ इस िमंत्र द्वारा देवता का न्यास और ‘असौयो-वसर्पति’ इससे उपसमर्पण करे। फिर ‘नमोस्तु नीलग्रीवाय’ इस मंत्र से मनु द्वारा पाद्यस्नान और रुद्रगायत्री से अघ्य्र देकर ़यम्बक मंत्र से आचमन कराएं। फिर ‘दधिक्राब्णो’ इस मंत्र से दधि स्नान और ‘घृतयाव’ इस मंत्र द्वारा घृत से स्नान करावे तथा ‘पृथिव्याम्’ इस मंत्र द्वारा दूध से स्नान करावे। इस प्रकार वेदोक्त विधि से जो बुद्धिमान शंकरजी का पूजन करता है उसको शिवजी उत्तम फल प्रदान करते हैं।
               हे ब्राह्मणों, इसकी एक और साधारण विधि भी है। शिव के नामों से ही पार्थिव लिंग की पूजा करे। हे मुनिश्रेष्ठ, जो पूजा सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली है, उसे सुनिये। ‘हर, महेश्वर, शम्भु, शूलपाणि, पिनाकधारी, शिव, पशुपति, महादेव’ इस क्रम से मृत्तिका लाकर उसे मिलावे ( मिलाकर शोधन करें) फिर प्रतिष्ठा और आवाहन कर स्नान, पूजन और क्षमा कराकर विसर्जन करे। ‘ओम् नमः शिवाय’ को भक्तिपूर्वक जपता हुआ शिवजी का ध्यान नित्य करता रहे।  इस प्रकार ग्रु के दिये हुए पंचाक्षरी मंत्र को विधिपूर्वक सर्वदा जपे। बुद्धिमान् को उचित है कि नाना प्रकार से शतरुद्रिय का पाठ करता रहे। तदनन्तर हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर भक्ति से प्रसन्नचित्त होकर इस प्रकार शंकर भगवान् की प्रार्थना करें- ‘हे मृड, आपके गुणों को जानने वाला, आपमें चित्त लगाने वाला मैं आपका हूं। हे कृपानिधान, हे भूतनाथ, ऐसे जानकर मुझमें प्रसन्न होइये। हे शंकरजी, अज्ञान से अथवा ज्ञान से मैंने जो कुछ भी आपका पूजनादि किया है, वह आपकी कृपा से सफल हो। हे गौरीश, मैं तो महापापी हूं ओर आप महापवित्र हैं, ऐसा जानकर आपकी जैसी इच्छा हो वैसा करें। वेद-पुराण, सिद्धान्त तथा नाना प्रकार के ऋषियों द्वारा भी आप नहीं जाने गये। फिर हे महादेव, तो मैं कैसे जान सकता हूंद्य आप जैसे हैं, वैसे ही हैं, हे महेश्वर मैं सर्वभाव से आपका ही हूं। हे महेश्वर, आप मेरी रक्षा कीजिये, मुझ पर प्रसन्न होइये। इस प्रकार शिवजी के ऊपर (हाथ में लिये) उन पुष्पों और अक्षतों को चढ़ावे। फिर श्रद्धार्पूक स्तुति द्वारा देवेश का स्तवन करे, फिर गले से शब्द निकाल कर पवित्र हुआ नम्रतापूर्वक प्रणाम करे और सादर पूजन विसर्जन करे। हे मुनि-शार्दूल, इस प्रकार  सविधि पार्थिव पूजन से भक्त को भुक्ति, मुक्ति और भक्ति प्राप्त होती है। शिवजी का ऐसा भक्त अपनी सब कामनाओं को प्राप्त करता है। इस उत्तम आख्यान से आयु, आरोग्य, यश, स्वर्ग तथा पुत्र-पौत्रादि का सुख प्राप्त होता है।
इति श्रीशिव महापुराण विद्येश्वर संहिता की बीसवां अध्याय समाप्त।  क्रमशः

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