गतांक से आगे…
चौदहवां अध्याय
कथा-प्रसंग
आग्नि-यज्ञादि-विवेचन
ऋषि बोले – हे प्रभो! अग्नियज्ञ, देवयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, गुरु पूजा तथा ब्रह्मतृप्ति को क्रम से हमें बतलाइये।
सूत जी बोले-अग्नि में द्रव्य युक्त हवन करना ही अग्नि यज्ञ है। हे ब्राह्मणों, यह अग्नि यज्ञ कई प्रकार का होता है। एक तो वह जो समिधा अग्नि में हवन की जाती है, दूसरी ब्रह्मचर्य अग्नि जिसमें ब्रह्मादिक का बहुल्य होता है। जब तक विवाह नहीं होता तब तक वह ब्रह्मचारी है। जब विवाह हो जाये तब दो समय अग्नि यज्ञ करे। परन्तु जिन महापुरुषों ने अपनी आत्मा में ही अग्नि आरोपण की हो और वनवासी हों तो ऐसे पतियों के लिए समय पर थोड़ा और हितकर भोजन कर लेना ही अग्निहोत्र है। विवाह के समय से अग्नि संधान को सदैव सुरक्षित रखना योग्य है। उसे कुण्ड या भाण्ड में रखे जोकि सर्वदा सुरक्षित रहे और कभी न बुझे। ऐसी अग्नि अजस्र अग्नि कहलाती है। हे ब्राह्मणों, सायंकाल की अग्नि आहुति से सम्पत्ति बढ़ती है और प्रातः काल की अग्नि आहुति से आयु बढ़ती है तथा दिन में इन्द्रादिक सब देवताओं के उद्देश्य से अग्नि को जो आहुति दी जाती है वह अग्नि यज्ञ देव यज्ञ कहलाता है। ब्राह्मण और देवताओं की तृप्ति के लिए एक बार यज्ञ करे, शेष समय वेद का अध्ययन करे। हे ब्राह्मणां, अब एक और आदर्श सुनो-
आदि सृष्टि में करुणाकर महादेव जी ने सर्वलोकों के अपकारार्थ सर्व औषधियों की औषधि प्रथम अपना वार अर्थात् आदित्यवार बनाया और पुनः सप्ताह के शेष छः दिनों को उनके गुणों के अनुसार उनकी वैसी रचना की। उन्होंने प्रत्येक दिन का उसका देवता और उसका फल नियत किया तथा जिनसे आरोग्य सम्पत्ति, व्याधि नाश, पुष्टि, आयु, भोग, मृत्यु और हानि ये यथाक्रम से प्राप्त होते हैं वह विधि भी नियत की। उन वारों (दिनों) के देवताओं की प्रीति से उनकी पूजा का वैसा फल देने वाले भगवान् श्रीशिव ही हैं। वह पूजा पांच प्रकार की कल्पित की गयी है। जिस देवता को प्रसन्न करना हो उसी का मंत्र, होम, दान और जप करे। नेत्र, शिरो रोग व कुष्ठ की शान्ति के लिये आदित्य की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन कराये। तीन दिन, तीन महीने या तीन वर्ष अथवा इससे भी अधिक पूजा करे। यदि प्रारब्ध प्रबल हुआ तो गण आदिक रोग नष्ट हो जायेंगे। इसमें सन्देह नहीं है।
पापों की शान्ति के लिये रविवार के दिन की पूजा उत्तम है, जिसमें जप आदि से इष्टदेव को प्रसन्न किया जा सकता है। लक्ष्मी के लिये सोमवार को लक्ष्मी-पूजा करे। रोग-शान्ति के लिए मंगलवार उत्तम है और इस दिन काली आदि का भजन पूजन करे और उर्द, मूंग आदि चार किलोग्राम किसी गरीब ब्रह्मण को देकर पश्चात् भोजन करावे। बुधवार के दिन विष्णु का दही से व अनेक प्रकार से भजन-पूजन करे तो सर्वदा पुत्र, मित्र, कलत्र (स्त्री) की पुष्टि होती है, बृहस्पति का दिन आयुवर्धक है। इस दिन ब्राह्मणों को गौ, देवताओं को उपवीत, वस्त्र चढ़ाकर क्षीर, दूध, घी से उनकी पूजा अर्चना करे। भोगों का इच्छुक शुक्रवार को जितेन्द्रिय होकर षट्रस भोजन युक्त देवताओं और ब्राह्मणों की पूजा करे। स्त्री-प्राप्ति के लिये शनिवार के दिन रुद्र आदि का भजन पूजन करे और तिल का होम, तिल का दान और तिल युक्त भोजन ब्राह्मणों को करावे। साथ ही उन दिनों के उन-उन देवताओं को नित्य पूजा, स्नान, दान, जप, होम और तर्पण करता रहे। देश, काल, पात्र का विचार कर जो श्रद्धा सहित इन वारों के नियम का पालन करता है उसे इस देवोपासन द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है। ब्राह्मणों को मंत्रपूर्वक और शूद्रों को तंत्र विधि से पूजन कराना योग्य है। धनाभाव हो तो तप से देवताओं की उपासना करे। धनी हो तो धन से पूजा करे। परन्तु जो कुछ करे, श्रद्धा से करे। फिर तो उसके इस प्रकार करते रहने से समयानुसार उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो ब्राह्मण इस अध्याय को पढ़ेंगे और दूसरों को सुनायेंगे, उन्हें देवयज्ञ का फल प्राप्त होता है।
इति श्रीशिव महापुराण विद्येश्वर-संहिता का चौदहवां अध्याय समाप्त। क्रमशः….