हिमाचल के गृह से वर की विदाई

             ब्रह्मा जी बोले – अब विष्णु आदिक सब देवता और तपोधन मुनि वहां से विदा के लिए उद्यत हुए। हिमालय अपने बन्धुओं के साथ जनवासे में आये। शिवजी की अनेक प्रार्थना कर कृतज्ञता प्रकट की और निवेदन किया कि कुछ दिन और यहां निवास कीजिये। यह सुन विष्णु आदिक देवताओं ने गिरि शार्दूल को धन्यवाद दिया और कहा कि तुम्हारे समान त्रिलोकी में पुण्यधारी कोई नहीं है। इस प्रकार परस्पर एक ने दूसरे की प्रशंसा की। जय-ध्वनि, वेद-ध्वनि और साधुवाद की ध्वनि से आकाश मुखरित हो गया। अप्सराएं नाचने लगीं, मागध स्तुति-पाठ करने लगे और बहुत सा द्रव्य दान दिया गया। हिमालय ने फिर शंकरजी को आमन्त्रण कर बरातियों सहित सबको घर बुलाकर उनके चरण धोये। फिर शिवजी सहित सबको सुन्दर स्वादिष्ट भोजन कराया। भोजन करते समय नगर की स्त्रियां सबको देख हंस-हंस कर मधुर वाणी में सुन्दर गालियां देने लगीं। पश्चात् भोजन कर सबने आचमन कर प्रसन्नता और तृप्ति पा अपने स्थान को प्रस्थान किया। तीसरे दिन भी सबका सम्मान हुआ। गिरीश ने विधिपूर्वक दान-मान सहित सबका आदर किया। चौथे दिन सविधि चतुर्थी कर्म किया और इस अवसर पर भी साधुवाद और जय-ध्वनि सहित बड़ा उत्सव हुआ और हिमालय ने बहुत सा दान दिया। पांचवें दिन सबने फिर चलने का प्रस्ताव भेजा, परन्तु हिमालय ने आग्रह कर सबको पुनः रोका और कुछ दिन तक शिवजी सहित सब देवता वहीं टिके रहे।

             पश्चात् सप्तर्षियों ने जाकर मैना और हिमालय को बहुत समझाया। शिव तत्त्व का वर्णन किया तथा शिवजी को विदा करने का अनुरोध किया। तब हिमालय ने स्वीकार कर बड़े आदर से सबको विदा किया। जब शिवजी कैलास को चले तो मैना उच्च स्वर से रोती हुई शिवजी से बड़ी स्तुति कर उनकी कृपा मांगने लगीं। पुनः पुत्री को समीप कर मैना उच्च स्वर से रोने लगीं और उन दोनों के आगे गिर पड़ीं। तब शंकरजी मैना को समझा देवताओं सहित मौन हो वहां से चल दिये। पुर के बाहर अपने एक उपवन में हिमालय ने उन्हें ठहराया। पश्चात् वहां से देवताओं सहित शिवजी विदा हुए। आगे पार्वती का विरहोत्सव ध्यान से सुनो।

             इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का तिरपनवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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