गतांक से आगे, सैंतालीसवां अध्याय, कथा-प्रसंग
शिव-हिमगृह-गमन
ब्रह्मा जी बोले – अब शैलराज ने वेद-मन्त्र द्वारा पार्वती का यज्ञोपवीत संस्कार कराया, जिसमें विष्णु आदिक सब देवता और मुनि कुतूहल पूर्वक सम्मिलित हुए। फिर शिवजी के दिये हुए भूषणों से पार्वती जी को अलंकृत कराया गया और शंकर प्रिया ने निर्मल वस्त्र धारण किये। त्रिजगद्धात्री ने मन में भगवान शंकर का ध्यान किया। दोनों ओर आनन्द वर्द्धक उत्सव होने लगे। ब्राह्मणों को अनेक प्रकार के दान दिये गये तथा और भी याचकों को दान दिया गया। गीत-वाद्य के उत्सव मनाये गये। सभी देवता भक्तिपूर्वक शिव और पार्वती को प्रणाम कर हिमालय की आज्ञा से अपने-अपने आसन पर बैठ गये।
तब ज्योतिषाचार्य गर्गजी ने पर्वतराज हिमालय से कहा कि, हे हिमाचल, धराधीश, हे काली के पिता, अब तुम पाणि-ग्रहण के लिए शंकरजी को अपने घर में ले आओ। कन्या-दान का यही उचित समय है। पर्वतराज ने ब्राह्मों को भेज कर शिवजी को अपने घर में बुलाया। बाजे बजने लगे। वेद-ध्वनि और गीत तथा नृत्यादिकों से उत्सव होने लगा। उसी समय हर्ष से देवताओं सहित कन्या-दान का समय जान कर शिवजी अपने वृषभ पर बैठ कर यज्ञ-मण्डप में आये। पर्वतोत्तम ने वृष से शंकरजी को गृह में प्रवेश कराया। फिर सब देवताओं को प्रणाम एवं उनका सम्मान कर आंगन में रत्नजड़ित सिंहासन पर बिठाया। ब्राह्मणियों तथा अन्य पुरन्ध्रियों के साथ मैना ने हर्ष पूर्वक उनका नीराजन कर मधुपर्क दिया। पुरोहित ने मांगलिक कृत्य कराये।
इधर शिवजी की ओर से लग्न को देख बृहस्पतिजी ने कन्यादान का परमोत्सव आरम्भ किया। उधर से शुभ घड़ी को विचार कर एक घड़ी रात शेष रहने पर गर्गजी ने प्रणय भाषण किया। पुण्याहवाचन कर पार्वती के हाथ में चावलों की अंजलि दी जिसे भगवती ने शिवजी के ऊपर धारण किया तथा पार्वती ने दधि, अक्षत्, कुश और जलों से परम मोद और रुचिपूर्वक लोकाचार किया। उभय पूजन से वहां एक परम शोभा छा गयी। लक्ष्मी आदि स्त्रियों ने विशेष रूप से नीराजन (आरती आदि मांगलिक कृत्य) किया। फिर शिवा शंकर को और शंकर पार्वती को देखते हुए बड़े ही आनन्दित हुए।
इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का सैंतालीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः