गतांक से आगे बाईसवां अध्याय कथा-प्रसंग
शिव-सती क्रीड़ा
ब्रह्मा जी बोले – एक दिनजी बोले – एक दिन जब वर्षा हो रही थी, तब कैलास शिखर पर बैठे महादेवजी से सती ने पूछा कि, हे देववादि देव, महादेव, हे प्राणवल्लभ, अब वर्षा काल आ गया है, इससे कैलास में हिमालय में या कहीं महाकाशी अथवा पृथ्वी में जहां रहने योग्य स्थान हो वहां चल कर रहिये। तब सती की यह प्रार्थना सुनकर महादेवजी इस प्रकार हंस पड़े कि उनके ललाट का चन्द्रमा प्रकाशमान हो गया और सत तत्वों के ज्ञाता भगवान शंकर ने हास्य करते हुए सती से कहा- हे प्रिये, जहां मैं तुम्हारे साथ रहूंगा वहां मेघ कभी न जायेंगे। वर्षा-काल में भी मेघ हिमालय के नितम्ब पर ही भ्रमण करते रहेंगे और कैलास पर तो उसके पद भाग में ही भ्रमण करते हैं। इससे आगे वे कभी नहीं जाते। यह सब जानकर आपको चाहे जिस गिरीन्द्र पर चलने की प्रीति हो मुझसे कहिये। पर मेरे विचार से हिमालय सर्वोत्तम है। यहां आपके विविध श्रंृगार और विहार होंगे। पर्वतराज की पत्नी मेनका भी तुम्हारे मन के अनुकूल ही करेंगी। गिरिराज के गण भी तुम पर प्रीति करेंगे। जब कभी तुम शोकान्वित होगी तो वे तुम्हें समझाया करेंगे। फिर हिमालय शान्त स्थान है। यहां शान्ति के उपासक रहते हैं। योगी और मुनि यहीं रहते हैं और अनेकों मृग भी विचरा करते हैं तथा और भी बहुत से स्थान हैं। क्या तुम मेरे कैलास के ऊपर कुबेर की पुरी के ऊपरी भाग में स्थित होना चाहती हो? वहां की कन्दराओं में देव-कन्याएं गाती रहती हैं। सुमेरु भी सब गुणों से सुन्दर है। जहां कहो वहीं पर तुम्हारा प्रबन्ध कर दूं।
ब्रह्माजी कहते हैं कि जब भगवान शंकर ने ऐसा कहा तब सतीजी ने अपना मत प्रकाशित करते हुए कहा-हे नाथ, मैं आपके साथ हिमालय में ही निवास करना चाहती हूं। उसी पर्वत पर आप शीघ्र चलिये। सती के कहने पर भगवान शंकर उनको साथ ले हिमालय पर चले गये, जहां कि कोई नहीं जा सकता था। मनुष्य को तो कौन कहे वहां पक्षी भी नहीं जा सकते थे। वहां प्राकृतिक छटा छा रही थी। वहां रह कर शंकरजी सती के साथ बहुत दिनों तक रमण करते रहे। उनके वहीं इस प्रकार दस हजार वर्ष व्यतीत हो गये। अब वे यज्ञ, तप और स्वरूप-चिन्तन त्याग सती में ही अनुरक्त हो गये तथा सती सर्वदा महादेवजी का और महादेवजी सती का मुख देखा करते। इस प्रकार शिव सती ने एक दूसरे के अनुराग और भाव की वृद्धि की।
इति श्रीशिव महापुराण द्वितीय सती खण्ड का बाईसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः