शिव पुराण की महिमा और संहिताओं के भेद

                सूतजी बोले – हे मुनीश्वरांे!! यह आपने समस्त संसार के हितार्थ बड़ा ही  अच्छा प्रश्न किया है। मैं आप लोगों की ऐसी जिज्ञासा देखकर श्रीगुरु चरणों को स्मरण बतला रहा हूं उसे ध्यान पूर्वक सुनिये।

                कलियुग के पापों का नाश करने वाला, परमार्थदायक श्रीशिव-पुराण नामक ग्रन्थ सब ग्रन्थों से उत्तम और वेदान्तसार का भी सर्वस्व है, जिसे पढ़ने व सुनने से मनुष्य सर्वोत्तम शिव गति को प्राप्त होता है। जब तक इस ग्रन्थ का उदय नहीं हुआ है, तभी तक कलियुग में ब्रह्म हत्या आदि पाप फैल रहे हैं।

                शास्त्रों के झगड़े, नाना प्रकार के उत्पात, क्रूर यम दूतों की निर्भयता, तीर्थों का विवाद, सत्य, दान और देवताओं की मान्यता सम्बन्धी विवाद तभी तक महीतल पर हो रहे हैं, जब-तक श्रीशिव पुराण का पृथ्वी पर उदय नहीं होता है। जब यह प्रत्यक्ष हो जायेगा तब शास्त्रों के परस्पर झगड़े आदि सभी इसकी गर्जना मात्र से समाप्त हो जायेंगे। क्योंकि भगवान् वेद व्यास के कहे हुए इस पुराण का बहुत महत्व है। इसके कीर्तन और श्रवण से जो फल प्राप्त होता है, वह सब तो मैं नहीं कह सकता, किन्तु उसका कुछ महात्म्य मैं आप लोगांे से कहता हूं ध्यान पूर्वक श्रवण करें। इसमें मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कहूंगा, जो कुछ व्यास जी ने कहा है सिर्फ वही अक्षरशः कहूंगा।

                व्यास जी कहते हैं- यदि शिव पुराण का एक या आधा श्लोक भी कोई पढ़ लेेगा या सुन लेगा तो वह पाप से छूट जायेगा और यदि सावधानी से सम्पूर्ण पढ़ेगा तो जीवन से मुक्त हो जायेगा और जो इसके अनुसार आचरण करेगा तो एक-एक दिन में एक-एक अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करेगा। यदि कोई दूसरा भी श्रीशिव पुराण की पूजा कर दे तो वह भी सब देवताओं की पूजा के समान फल प्राप्त करेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। क्योंकि शिव-संहिता नामक इस सुधा को स्वयं श्री शिव भगवान् ने उपनिषद् रूपी समुद्र को मथ कर उसमें से निकाला है, अतः जो इसका पान करेगा वह निश्चित ही अमर हो जायेगा। यदि कोई एक मास तक इसे पढ़ेगा तो ब्रह्म हत्यादि पापों से भी मुक्त हो जायेगा और शिवालय में या बिल्व के वन में जो इस संहिता को पढ़ेगा वह अद्भुत फल का लाभ भी प्राप्त करेगा।

                जो श्री भैरवजी की मूर्ति के सम्मुख इसका दिन में तीन बार पाठ करता है, उसके सभी मनोरथों की पूर्ति होती है। यदि चतुर्थी तिथि के दिन कोई व्यक्ति पूरे दिन व्रत रहकर बिल्व वृक्ष की जड़ में बैठकर इसे पढ़े तो शिवजी की पूजा के समान  देवता भी उसकी पूजा करने लगेंगे। इसमें शिवजी के दिये हुए अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पदार्थों का विवेचन और उनकी प्राप्ति के उपाय तथा शिवजी की लीला और विज्ञान सब कुछ समाहित है।  अतएव यह सब प्रकार से आदरणीय अर्थात् उपयोगी व मोक्ष का द्वार खोलता है।

                वेद और श्री ब्रह्माजी की सम्मति के अनुसार श्रीशिवजी ने ही सर्वप्रथम इस श्रीशिव पुराण की रचना की थी जिसमें 1. विद्येश्वर संहिता, 2. रुद्र संहिता, 3. विनायक संहिता, 4 उमा संहिता, 5. मातृ संहिता, 6. एकादश रुद्र संहिता, 7. कैलाश संहिता, 8. शत रुद्र संहिता, 9. कोटि रुद्र संहिता 10. सहस्र कोटि रुद्र संहिता, 11. वायवीय संहिता और 12. धर्म संहिता ये बारह संहिताएं इस महापुराण में समाहित हैं। ये सभी पुण्य देने वाली हैं। इनमें से विद्येश्वर, रुद्र और विनायक ये तीनों संहिताएं दस-दस हजार, उमा और मातृ ये दोनों आठ-आठ हजार, एकादश रुद्र संहिता तेरह हजार, कैलास संहिता छः हजार, शतरुद्र तीन हजार, कोटिरुद्र नौ हजार, सहस्र कोटि रुद्र ग्यारह हजार, वायवीय संहिता दस हजार और धर्म संहिता बारह हजार कुल एक लाख श्लोकों का यह श्रीशिव पुराण महात्म्य है।

                परन्तु प्रभु शिवजी ने अब इसे केवल चौबीस हजार का ही सभी को सुलभ कराया है और पुराणों में यह चौथा पुराण कहलाता है। परन्तु अब इसमें सात संहिताएं ही प्रधान हैं। अन्यथा सृष्टि के आरम्भ में श्रीशिवजी ने इसे सौ करोड़ श्लोकों में कहा था। यह सभी पुराणों में सर्वोच्च और सब जीवों का कल्याण दाता है। इसे परम आदर से पढ़ने वाला श्रीमहादेव का परमप्रिय हो परमगति को प्राप्त करता है। अब यह चौबीस हजार संख्याओं वाला श्रीशिव पुराण केवल सात संहिताओं में ही शेष रह गया है। इस श्रीशिव पुराण में 1. विद्येश्वर संहिता, 2 रुद्र संहिता, 3. शतरुद्र संहिता, 4. श्रीकोटि रुद्र संहिता, 5. श्री उमा संहिता, 6. श्री कैलाश संहिता और 7वीं वायवीय संहिता का समावेश प्रभु महादेव की कृपा से किया गया है।

  इति श्री शिव महापुराण विद्येश्वर संहिता का दूसरा अध्याय समाप्त।

क्रमशः

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