शिव-पार्वती चरित्र और पुष्प-बाणोत्पत्ति

    सूतजी बोले, हे नैमिषारण्य के वासियो, ब्रह्माजी की ऐसी वाणी को सुनकर मुनिवर्य नारदजी फिर पापनाशिनी कथा पूछने लगे। नारदजी ने कहा कि, हे ब्रह्माजी, आपके मुख कमल से शिवजी की आनन्द दायक कथा सुनते हुए मैं तृप्त नहीं होता हूं। हे विश्व के रचयिता, मैं दिव्य सती शिवजी का चरित्र फिर सुनना चाहता हूं। सती की उत्पत्ति कैसे हुई? महादेवजी का मन स्त्री करने में कैसे हो गया? दक्ष कोप में सती ने कैसे शरीर त्यागा और हिमालय की पुत्री पार्वती कैसे हो गईं? उनका उग्र तप, विवाद, कामनाश आदि कथाएं विस्तारपूर्वक मुझे सुनाइयें ब्रह्माजी ने कहा हे मुनि, अब पार्वती और शिव का अत्यन्त पवित्र और गुह्य से भी गुह्य परम पावन और दिव्य यश सुनो।
     पहले शिवजी निर्गुण, निर्विकल्प, शिवस्वरूप, निर्विकारी और परात्पर दिव्य रूप एक ही थे। फिर उमा के साथ सगुण और शक्तिमान प्रभु हो गये, जिनके बायें अंग से विष्णु और दक्षिण अंग से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। तभी से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा, पालकर्ता विष्णु और लयकर्ता रुद्र हुए और तभी से सदाशिव के तीन रूप हो गयें अब मैं इन तीनों का आराधक हो गया। इनकी आराधना से मैं सुरासुर सहित मनुष्यादि की सृष्टि करने लगा। मैंने ही सब प्रजापतियों को बनाया। मैं सभी प्रकार से उन्नत था। फिर मैंने मरीचि, अत्रि, पुलह, पुलस्त्य, अंगिरा, क्रतु, वशिष्ठ, नारद, दक्ष और भृगु को बनाया और जब मैं इन्हें उत्पन्न कर चुका तब मुझे कुछ माया का मोह आ गया और तत्क्षण मेरे भौंहों के बीच से संध्या नामक एक कन्या उत्पन्न हो गई, जिसको देखते ही मैं उठ पड़ा और मेरे पुत्र दक्ष और मरीचि ने भी हृदय में शोच किया। तब मुझ ब्रह्मा के चिन्तित होते ही तत्क्षण एक सुन्दर और अद्भुत रूप वाला प्राणी काले बालों से युक्त, श्यामगज के समान, स्थूलकाय वाला और नीला सुन्दर वस्त्र पहने, कान्ता की तरह दोनों कटाक्षां को घुमाता हुआ आविर्भूत हो गया। उसकी श्वास से सुगन्धि निकल रही थी और वह परम श्रृंगारित था। तब ऐसे पुत्र को प्रकट हुआ देखकर मेरे अन्य पुत्रों में बड़ी उत्सुकता हुई और उनमें विकारी भाव का संचार हो गया। उनका हृदय अधीर हो गया। उसी समय तत्क्षण प्रकट हुए उस पुत्र ने मुझको सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए कहा कि, ब्रह्मन्, मुझे क्या आज्ञा है? मुझे उसमें लगाइये जिसके करने से मेरा आदर हो। ब्रह्माजी ने कहा-तुम सनातनी सृष्टि उत्पन्न करो। मैं, वासुदेव और सभी तुम्हारे वश में हैं। आज से तुम्हारा नाम पुष्प-बाण होगा। तुमसे लोगों में आश्चर्य, सदैव सुख का लक्ष्य और नित्य ही प्राणियों में मद उत्पन्न हुआ करेगा और तुम इसी प्रकार सृष्टि के प्रवर्त्तक बनो। मेरे ये पुत्र भी तत्व रूप से तुम्हारे नाम का स्मरण करेंगे। यह कहकर कमलासन पर बैठे ब्रह्माजी क्षण भर के लिये मौन हो गये।
     इति श्रीशिव महापुराण द्वितीय सती खण्ड का दूसरा अध्याय समाप्त। क्रमशः

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