शिव चरित्र विवेचन

नारदजी बोले – हे ब्रह्माजी, यह तो आपने बड़ी ही अद्भुत कथा सुनाई। इससे तो मेरे हृदय में और भी प्रीति बढ़ी। हे ब्रह्माजी, जब मैं और हिमालय भी अपने स्थान को चले गये तो क्या हुआ, वह कहिये, तब ब्रह्माजी बोले- हे नारद, तुम्हारे चले जाने पर मैना ने अपने पति के पास जाकर कहा कि हे स्वामि, मैंने मुनि के वचनों को नहीं समझा। आप किसी सुन्दर वर के साथ इस कन्या का विवाह कीजियेगा। इस कन्या के लिये सुन्दर वर होना चाहिए। ऐसा कह कर नेत्रों में आंसू भरे मैना पति के चरणों में गिर गई। तब उसे उठाकर गिरिराज बोले-हे देवि, मैं तुमसे सत्य कहता हूं। तुम भ्रम को त्याग दो। नारद मुनि का वाक्य कभी असत्य नहीं होता। यदि तुम्हारी पुत्री पर ऐसा ही अधिक स्नेह है तो उसके पास जाकर तप करने का आदेश दो। थोड़े ही दिनों में शिवजी इस कन्या का पाणिग्रहण करेंगे और हमारे सभी अमंगल दूर होकर सब कार्य शुभ हो जायेंगे।

यह सुन मैना प्रसन्न हो पुत्री के पास आई और तप करने का आदेश देना चाहा। परन्तु गिरि-प्रिया स्नेहवश अपनी पुत्री से कुछ कह न सकी पर पार्वती देवी ने माता के अन्तर्भावों को समझ लिया। फिर तो पार्वती ने अपनी माता से कहा कि, हे माता। मैंने आज ही ब्रह्म मुहूर्त में एक बड़ा सुन्दर स्वप्न देखा है। एक ब्राह्मण मुझे दया करके यह उपदेश दे रहा है कि, हे पुत्री तुम शिवजी की तपस्या करो। यह सुन कर मैना ने अपने पति को बुलाकर पुत्री का स्वप्न कह सुनाया। उसे सुन गिरिराज को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा हे प्रिये, आज प्रातः मैंने भी एक स्वप्न देखा है। एक तपस्वी ब्राह्मण मेरे नगर के पास तप करने आया है। मैं अपनी पुत्र सहित उसके पास गया हूं और उसकी सेवा के लिये मैंने अपनी पुत्री को उसे दे दिया है। परन्तु उसने स्वीकार नहीं किया है। फिर भी मैंने अपनी सुता को उसकी सेवा के लिये नियुक्त कर दिया है। अतः हे प्रिये, कुछ समय तक इसकी प्रतीक्षा करो, आगे जो होगा सो देखा जायेगा। हे मुनीश्वर, ऐसा कह कर गिरिराज चुप हो गये और मेनिका सहित उस समय की प्रतीक्षा करने लगे।

इस प्रकार जब बहुत समय व्यतीत हो गया, तब सती के वियोगी शिवजी अपने गणों को साथ लिये तप करने उसी नगर में आये। यह देख पार्वती अपनी सखियों को साथ ले नित्य वहां जाकर उनकी सेवा करने लगीं। परन्तु काम से पीड़ित होते हुए भी शिवजी में कोई विकार न आया। इसको देख देवताओं ने कामदेव को उनके पास भेज दिया। शिवजी ने उसे अपनी नेत्राग्नि से भस्म कर दिया। फिर मुनि के वचनों को स्मरण कर अन्तर्धान हो गये। पश्चात् पार्वती ने महान तप कर शिवजी को प्रसन्न किया और विष्णु की आज्ञा से शिवजी ने पार्वती जी के साथ विवाह किया। हे तात, यह संक्षेप में मैंने शिवजी का परम दिव्य विवाह कहा, अब आगे और क्या सुनना चाहते हो कहो।

                       इति श्रीशिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का नवां अध्याय समाप्त।  क्रमशः

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *