गतांक से आगे, पैंतालीसवां अध्याय, कथा-प्रसंग
शिवजी का सुन्दर स्वरूप-वर्णन
ब्रह्मा जी बोले – उसी समय विष्णु से प्रेरित हो तुम शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उनके पास गये। उनकी अनेक स्तोत्रों से बड़ी स्तुति की और बहुत समझा कर उन्हें तुमने बहुत सुन्दर रूप धारण कराया। उन्हें देख तुम प्रसन्न हो मैना के पास आये और कहा कि, हे मैंने, हे विशालाक्षि, देखो, तुम पर कृपा करके शिवजी ने बहुत ही सुन्दर रूप धारण किया है। मैना ने देखा, शिवजी ने करोड़ों सूर्य के समान तेज वाला सुन्दर रूप धारण किया है। उनके सभी अवयव सुन्दर थे और वे विचित्र वस्त्र धारण किये थे तथा अनेकों प्रकार के आभूषणों से अलंकृत थे। उनका वह गौर कान्तिमान रूप तथा सिर के अग्रभाग में चन्द्रमा की रेखा शोभित थी। विष्णु आदि सभी देवता प्रेम से उनकी स्तुति कर रहे थे। फिर सिर पर सूर्य का छत्र और चन्द्रमा शोभित थे। उनका परम रमणीय वृषभ तो और ही शोभायमान था। गंगा और यमुना दोनों ओर से चंवर डुला रही थीं। तथा आठों सिद्धियां जिनके आगे नृत्य कर रही थीं। मैं और विष्णु आदि सभी देवता उनके आचरण में लगे थे। अनेकों गण जय-जय शब्द करते हुए अति प्रसन्न हो आगे चल रहे थे। स्त्रियां सहित देवताओं की अलग ही शोभा हो रही थी। अप्सराओं सहित विश्वासु आदिक गन्धर्व शंकरजी का यशोगान करते हुए आगे चल रहे थे।
उधर हिमालय के द्वार पर अलग ही महोत्सव हो रहा था। उस समय के भगवान शंकरजी की छटा को कौन वर्णन कर सकता है! शिवजी को देख मैना चित्रलिखित सी थोड़ी देर के लिए ठिठक गयीं। फिर प्रेमपूर्वक शिवजी से इस प्रकार बोलीं कि – मेरी पुत्री धन्य है जिसने कि अपने महान तप द्वारा आपको प्राप्त किया। हे शिवजी मैंने जो पहले आपकी बड़ी निन्दा की है उसे क्षमा कर मुझ पर प्रसन्न हो जाइये। शैलप्रिया इस प्रकार कह कर नम्र हो उन चन्द्रशेखर भगवान की स्तुति करने लगीं।
उसी समय शिव-दर्शन की लालसा से नगर की सब स्त्रियां वहां आ गयीं जिनके विविध रूप, श्रृंगार और भक्ति भाव का वर्णन नहीं हो सकता। नगर-निवासी स्त्री पुरुषों ने शिवजी का दर्शन कर अपना जन्म सफल माना। शिव-पार्वती की जोड़ी की प्रशंसा कर सबने ब्रह्मा की उस रचना की प्रशंसा की तथा इस प्रकार शंकर के दर्शन कर सभी कृतार्थ हुए। फिर तो पहले जैसे लक्ष्मी नारायण को और सरस्वती ब्रह्मा को पाकर शोभित हुईं वैसे पार्वती शंकर को प्राप्त हो परम शोभा को प्राप्त हो गईं। सबने चन्दन और अक्षतों से शिवजी की पूजा की तथा सादर फूलों की वर्षा की। सभी लोग मैना और हिमालय के भाग्य की प्रशंसा करने लगे। उसे सुन कर विष्णु आदि देवताओ सहित भगवान शंकर भी प्रसन्न हो गये।
इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का पैतालीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः