गतांक से आगे, अड़तीसवां अध्याय, कथा-प्रसंग
विश्वकर्मा द्वारा हिमालय के घर की कृत्रिम रचना
ब्रह्माजी बोले – हे मुनिसत्तम, इस प्रकार उस परमानन्द विवाहोत्सव को आरम्भ करने के पूर्व हिमालय ने अपने सारे नगर को अच्छी तरह सजाया। सभी मार्गों सहित राज्य मार्ग तथा सम्पूर्ण राज-सदन की सुन्दर सजावट की गयी। विश्वकर्मा को बुलाकर हिमालय ने सुन्दर व्याह मण्डप की रचना करायी। अनेक लक्षणों से आश्चर्य युक्त दस हजार योजन चौड़ा वितान बनवाया, जो स्थावर जंगम सभी के लिए बड़ा ही मनोहर था और जिसमें अनेक प्रकार की चमत्कृत वस्तुएं लगी हुई थीं। स्थावर की रचना ने जंगम को और जंगम की रचना ने स्थावर को जीत लिया था। इसी प्रकार जल की रचना ने भूमि को और भूमि की रचना ने जल को जीत लिया था। कहीं कृत्रिम सिंह, कहीं सारसों की पंक्ति और कहीं कृत्रिम मोर बने हुए थे। कहीं स्त्रियां पुरुषों के साथ नृत्य करती थीं और इस प्रकार वह सभी कृत्रिमतः दर्शकों का मन आकर्षित करता था। विश्वकर्मा के उस मोहक रचना ने सबको मोह लिया। उसने बड़े ही अद्भुुुुुुुत, सुन्दर, कान्तिमान् और सुखदायक, बड़े ही सुन्दर मंच बनाये। क्षण भर में ही विश्वकर्मा ने स्वयंभू के निवास के लिए बड़े ही दीप्तिमान् और अद्भुत सात लोक बनाये।
इसी प्रकार विष्णु के लिए वैकुण्ठ नामक स्थान और उनके लिये भी एक परम अद्भुत घर का विष्वकर्मा ने ऐसा निर्माण किया जिसमें सभी प्रकार के ऐश्वर्य विद्यमान थे। फिर लोकपालों के लिए सुन्दर घर और बड़े प्रेम से सभी प्रकार की दिव्य अद्भुत रचनाएं कीं। देवताओं के क्रम से सभी के लिए सुन्दर घरों का निर्माण किया। शिवजी के संतोष के लिए विश्वकर्मा ने क्षण भर में ही अलग एक सुन्दर और अनुपम स्थान की रचना की। इस प्रकार की सभी लौकिक रचनाएं कराकर हिमालय शिवागमन की प्रतीक्षा करने लगा। हे नारद, यह मैंने तुमसे हिमालय के घर का वृत्तान्त कहा। अब कहो इसके आगे और क्या सुनना चाहते हो?
इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का अड़तीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः