वज्रांग और वारांगी का परिचय

नारदजी ने पूछा- हे ब्रह्मन्। यह तारकासुर कौन था? यह किसका पुत्र था जिसने देवताओं को पीड़ित किया?  शंकरजी ने काम को कैसे भस्म किया तथा अपने कठिन तप द्वारा भगवती ने शंकरजी को कैसे प्राप्त किया? यह सब कथा मुझे सुनाने की कृपा कीजिये।

ब्रह्माजी बोले- हे नारद, मेरे पुत्र मरीचि और उनके पुत्र कश्यप हुए, जिनसे दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याएं ब्याह दीं। उनमें सबसे बड़ी कन्या दिति थी जिसने हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष नाम के दो पुत्र उत्पन्न किये। ये दोनों देवताओं के लिये परम दुःखदायी थे जिन्हें नरहरि रूप धारण कर विष्णुजी ने मार डाला। इससे (अपने पुत्रों के मरण से) दिति को बड़ा दुःख हुआ और वह आपने पति परम तपस्वी कश्यप के पास गयी तथा उनकी बहुत सेवा कर पुनः गर्भ को धारण किया, परन्तु इसका समाचार पाकर परमोद्योगी इन्द्र ने छिद्र देख कर दिति के गर्भ में प्रवेश कर वज्र से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। परन्तु दिति के कठिन व्रत से गर्भ नहीं मरा। उनसे उनचास मरुद्गण उत्पन्न हुए। इन्द्र ने उन्हंे अपना भाई बना लिया।

इससे दिति फिर अपने पति की सेवा करने लगी। उन्होंने प्रसन्न हो अपनी पत्नी दिति को तप करने की विधि बतला ब्रह्माजी की प्रसन्नता के लिये दस हजार वर्ष का तप कराया। उससे उसे वज्रांग नामक महावलशाली पुत्र प्राप्त हुआ। उसने अपनी माता की आज्ञा से इन्द्र्र को पकड़ कर दण्ड दिया और इसी प्रकार देवताओं को भी दण्डित किया। इससे दिति को हर्ष और देवताओं को बड़ा दुःख प्राप्त हुआ। तब मैंने कश्यपजी से मिल कर देवताओं का दुःख दूर किया। उस समय मैंने वरांगी नामक एक स्त्री की रचना कर वज्रांग को दिया, तब वह प्रसन्न हुआ। उससे उसने देवताओं को कष्ट देने वाला फिर एक पुत्र उत्पन्न करना चाहा।

इति श्रीशिवपुराण तृतीय पार्वती खण्ड का चौदहवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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