गतांक से आगे, दसवां अध्याय, कथा-प्रसंग
भौमोत्पत्ति
नारदजी बोले – हे महाभाग, सती के विरही शिवजी ने फिर क्या किया और हिमालय के पास तप करने के लिए वे कब गये? कामदेव कैसे भस्म हुआ और पार्वती ने तप कर शिवजी को कैसे प्राप्त किया तथा और भी जो चरित्र हो कृपा कर कहिये।
सूतजी कहते हैं-जब नारद जी ने इस प्रकार कहा तब ब्रह्माजी मन में शिवजी का ध्यान कर बोले- हे देवर्षि, हे शैवश्रेष्ठ, जब अपनी प्रिया के वियोग से व्याकुल शिवजी अपने स्थान पर लौटे तो वे सती देवी पार्वती जी का स्मरण करने लगे। फिर दिगम्बर हो शिवजी लोक-भ्रमण करने लगे, परन्तु कहीं भी पार्वती को नहीं पाते थे। तब वे फिर हिमालय पर्वत पर गये। वहंा जाकर उन्होंने फिर कठिन तप करना आरम्भ किया। जब उन्होंने समाधि खोली तो उनके सिर से जो पसीना गिरा, उससे चार भुजाओं वाला एक बालक प्रकट हो गया। उसका तेज असह्य था। प्रकट होते ही वह शिवजी के सामने रोने लगा। उसका रोना ऐसा ही था जैसे कोई प्राकृत मनुष्य रोता हो। तब पृथ्वी स्वयं स्त्री का रूप धारण कर शिवजी के पास जाकर उस बालक को गोद में उठा उसे अपना दूध पिलाने लगी। उसका मुख चूम कर उस पर प्रेम करने लगी।
यह देख कौतुकी शिवजी ने हंस कर कहा कि, हे पृथ्वी, तुम धन्य हो, तुम मेरे इस बालक को ले जाओ। यह बड़ा पराक्रमी और तेजस्वी होगा। यह बालक मुझसे बड़ा प्रेम करेगा और तुम्हारे ही नाम से विख्यात होगा। इसे कहीं कोई शाप न लगेगा और बड़ा दानी तथा गुणी होकर मुझे सुख देगा। तुम इसे प्रेम से ग्रहण करो। शिवजी की ऐसी आज्ञा पाकर पृथ्वी उस बालक को लिये हुए अपने स्थान को चली आयी और उस बालक का नाम भौम रखा। वह युवा हो बहुत दिनों तक शिवजी की तपस्या करता रहा। फिर शिवजी की कृपा से ग्रहपद को प्राप्त हो शुक्र से भी आगे के लोक में जा बसा।
इति श्रीशिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का दसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः