गतांक से आगे…
आठवां अध्याय
कथा-प्रसंग
भैरव-उत्पत्ति तथा ईश्वर का ब्रह्मादिका पर अनुग्रह
श्री नन्दिकेश्वर बोले – उस समय जो महादेव जी को ब्रह्माजी पर क्रोध आया तो उन्होंने अपनी भौंहों के मध्य से ‘भैरव’ नामक एक अद्भुत पु$ष को प्रकट कर दिया, जिसने नमस्कार कर उनकी आज्ञा मांगी। शिवजी ने आज्ञा दी कि तुम अपनी लपलपाती तलवार से ब्रह्मा की पूजा करो। यह आज्ञा पाते ही श्री भैरव जी ने ब्रह्मा के केश पकड़ लिये। ब्रह्मा थर-थर कांपने लगे। भैरवजी ने शीघ्र ही ब्रह्मा का मिथ्याभाषी पांचवां सिर काट लिया। फिर इन्होंने उनके और सिरों का भी काटना चाहा तभी ब्रह्माजी भैरव के चरणों में गिर गये।
यह देख विष्णुजी ने आंसू बहाते हुए बालकों के समान शिवजी के चरणों गिर गये और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे। शिवजी ब्रह्मा जी बोले तुमने अपनी प्रतिष्ठा और ईश्वरत्व के लिये छल किया। अतः अब तुम सत्कार-स्थान और उत्सव से विहीन किये जाते हो।
ब्रह्माजी शिवजी को हे स्वामिन् हे वरद यों कहकर अपना पांचवां सिर मांगने लगे। लेकिन प्रभु महादेव ने कहा- अराजकता के भय से मैं विश्व स्थिति को बिगड़ने नहीं दूंगा। हे पुत्र, जो अपराधी है उन्हें तुम दण्ड दो। लोक-मर्यादा का पालन करो। मैं तुम्हें वर देता हूं कि अब आज से तुम गणों के आचार्य माने जाओगे। कोई भी यज्ञ तुम्हारे बिना पूर्ण न होगा वहीं तुम्हारा सत्कार होगा।
ब्रह्माजी से ऐसा कहकर ईश्वर उस केतकी के पुष्प से बोले – रे मिथ्याभाषी केतक दुष्ट! तू भाग जा। तू मेरी पूजा के योग्य नहीं है। तब शिवजी के गणों ने उसे दूर भगा दिया। केतक शिवजी की प्रार्थना करने लगा और उसने कहा कि हे नाथ! कुछ तो सुफल कीजिए, मेरे पापों को दूर कीजिये, भला आपकी कृपा से क्या दुलर्भ है?
शिवजी ने कहा -मेरा वचन मिथ्या नहीं होता, हम तो तुम्हें नहीं ही स्वीकार करेंगे, परन्तु तुम मेरे भक्तों के योग्य हो और इस प्रकार तुम्हारा भी जन्म सुल होगा। जहां मेरी मण्डप-रचना होगी उसका शिर-मौर तू ही होगा। ईश्वर केतक, ब्रह्मा और विष्णु पर कृपा करके देवताओं के समक्ष आये देवताओं ने उनकी यथोचित पूजा अर्चना की और फिर शिवजी अपनी शोभित सभा में जाकर बैठ गये।
इति श्री शिव महापुराण विद्येश्वर संहिता का आठवां अध्याय समाप्त। क्रमशः….