ब्रह्मा, विष्णु और रुद्रों का आयु काल

कथा-प्रसंग
 परमेश्वर बोले- हे विष्णु, तुम्हारे सम्बन्ध में मेरी यह और भी आज्ञा है कि तुम सर्वदा सब लोकों में पूज्य और मान्य होगे। ब्रह्मा के बनाये लोकां में कभी दुःख उत्पन्न होगा तो तुम्हीं उसे नष्ट करने को तत्पर होगे और मैं तुम्हारी सब कार्यों में सहायता करूंगा। मैं तुम्हारे कठिन से कठिन शत्रुओं को मारूंगा। तुम अनेकों अवतार धारण कर जीवों का कल्याण कर अपनी कीर्ति का विस्तार करोगे। तुममें और रुद्र में कोई भेद न होगा। यदि कोई रुद्र भक्त तुम्हारी निन्दा करेगा तो उसके समस्त पुण्य शीघ्र ही नष्ट हो जायेंगे। तुममें निग्रह अर्थात् बन्धन और अनुग्रह अर्थात् कृपा करने की सामर्थ्य होगी, हे नारद, ऐसा कह कर मुझ ब्रह्मा का हाथ विष्णुजी के माथे पर धर कर शिवजी ने कहा कि तुम सर्वदा इनके दुःख में सहायता करना। तुम सबके अध्यक्ष और भुक्ति-मुक्ति देने वाले हो। तुम सब कार्यों के साधक और सबके प्राण रूप होगे। हे हरि, तुम पर जब कभी संकट आये तो मेरे इसी रुद्र शरीर का भजन करना। जो मेरा आश्रय लेता है उसके दुःख अवश्य ही दूर हो जाते हैं। जो मुझमें और तुममें अन्तर जानता है वह निश्चय ही नरक में गिरता है। अब इन तीनों देवताओं के आयुर्बल को सुनो।
  चार हजार युग का ब्रह्मा का एक दिन होता है और इसी क्रम से रात भी जाननी चाहिए। तीस दिन का एक महीना और बारह महीने का एक वर्ष- इस प्रकार के वर्ष प्रमाण से ब्रह्मा की सौ वर्ष की आयु होती है और ब्रह्माजी का एक वर्ष विष्णुजी का एक दिन कहलायेगा और वह भी इसी प्रकार के प्रमाण से सौ वर्ष जीवेंगे तथा विष्णु का एक वर्ष रुद्र के एक दिन के बराबर होगा और इसी क्रम से वह भी सौ वर्ष स्थित रहेंगे तब सदाशिव के मुख से एक श्वांस उत्पन्न होता है जिसमें उनके इक्कीस हजार के सौ और छः सौ दिन-रात होते हैं। उनके छः उच्छ्वास और निःश्वास का एक पल, साठ पल की एक घड़ी और साठ घड़ी का एक दिन-रात होता है। शिव के उच्छवास-निःश्वास अर्थात् भीतर-बाहर श्वांस लेने की संख्या नहीं है। इसी कारण शिव का उत्थान अक्षय है। अतः तुम मेरी आज्ञा से रूप की रक्षा करते हुए अनेक प्रकार के गुणों से सृष्टि का कार्य करो।
   ब्रह्माजी कहते हैं कि जब शिवजी ने ऐसा कहा तब उनके वचनों को सुनकर विष्णु जी ने विश्वेश को प्रणाम कर कहा कि हे कृपासिंधो, मैं आपकी सब आज्ञाओं को सर्वदा के लिये शिरोधार्य करता हूं और वचन देता हूं कि ऐसा ही करता रहूंगा। फिर तो शिवजी ने अपना मंगलमय हाथ विष्णुजी के सर्वांग पर फेर कर उन्हें धर्मोपदेश देकर अनेकों वर दिये और देखते ही देखते शीघ्र ही अन्तर्धान हो गये। उसी समय से इस लोक में लिंग पूजा की विधि चली है। लिंग से प्रतिष्ठित शिवजी भुक्ति-मुक्ति प्रदायक हैं। यदि कोई इस आख्यान को लिंग के समीप पढ़ता है तो वह छः महीने में शिवरूप हो जाता है। हे मुनियो, इसका पुण्य-फल कहने में मैं असमर्थ हूं।
इति श्री शिव महापुराण द्वितीय रुद्र-संहिता का दसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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