गतांक से आगे... तीसरा अध्याय कथा-प्रसंग ब्रह्मा-काम संवाद
ब्रह्मा जी ने कहा- इसके पश्चात् सब मरीचि आदि मुनियां ने उनका यह अभिप्राय जान कर उसका यथोचित नाम रख दिया। उन्होंने कहा कि तुमने उत्पन्न होते ही ब्रह्मा का चित्त-मंथन कर दिया था इससे तुम्हारा पहला नाम संसार में मन्मथ होगा। तुम्हारे जैसा संसार में कोई नहीं है। इससे तुम्हारा दूसरा नाम काम होगा। तीसरा मोहन से तुम्हारा नाम मदन और चौथा कन्दर्प इसलिये होगा कि तुममें बहुत अहंकार है। तुम्हारे समान कोई देवता पराक्रमी और सर्वव्यापक नहीं होगा। तुम्हारे लिये प्रजापति दक्ष एक सुन्दर कामिनी स्त्री देंगे जिसे ब्रह्माजी उत्पन्न कर चुके हैं और जिस रूपवती का नाम संध्या है। यह सुनकर उस काम ने अपने पांचों बाणों का नामकरण कर तुरन्त उनका परीक्षण करना चाहा। हर्षण, रोचन, मोहन, शोषण और मारण- ये पांच नाम हुए, जो मुनियों के भी मोहक थे। उसने इन पांचों बाणों को मुनियां पर चला दिया। संध्या भी थी। उसने कहा-अच्छा, इसे तो मैं ही मोहित करूंगी। इतने में काम ने पांचों बाणां का प्रयोग कर दिया। मोहन ने ब्रह्मदिकों के मन को मोह लिया। सबके मन में विकार हुआ। वे विकृत हुए। सभी बार-बार संध्या को देखने लगे। उनमें काम की वृद्धि हो गयी। मुझमें उनचासों भाव जागृत हो गये। संध्या में भी विकार आया वह भी ऋषियों पर कटाक्षपात करने लगी। एक प्रजापति ने भी उसकी इच्छा की। मरीचि, अत्रि और दक्ष आदि सब मुनि इन्द्रियों के विकार को प्राप्त हो गये। तब मुझे और सब मुनियों तथा संध्या को देखकर काम को अपने कर्म में विश्वास हुआ। तब पिता और भाइयों की पापगति को देखकर काम को बड़ा दुःख हुआ और उसने धर्मरक्षक प्रभु शिवजी का स्मरण किया। उसने महेशान की स्तुति की। मैं ब्रह्मा भी वहां उपस्थित हुआ। तब मुझे देखकर आकाश स्थित शिवजी हंसते और मुझे लज्जित करते हुए बोले-हे ब्रह्मन्, तुम्हें पुत्री को देखकर काम कैसे प्रकट हो गया? यह तो वेद मार्ग से चलने वालों को उचित नहीं है। विद्वान जन माता, बहन और भाई की स्त्री तथा कन्या को भूलकर भी कुदृष्टि से न देखें। फिर वेद तो तुम्हारे मुख मे ही विराजमान हैं, जिसे काम मात्र से तुमने कैसे भुला दिया? फिर वे सर्वदा सूर्य-दर्शन करने वाले दक्ष, मरीचि आदि एकान्त योगियों का चित्त स्त्री को देखकर कैसे मलिन हो गया? हां जिसके चित्त को स्त्रियां हरण कर लेती हों, उनके साथ शास्त्र संगति कैसे की जा सकती है? ब्रह्माजी कहते हैं कि जब लोक-पितामह शिवजी ने इस प्रकार कहा तो लज्जा के मारे क्षण भर मैं पसीने से भीगा रहा। मेरा विकार हट गया। परन्तु मेरे शरीर से जो पसीना गिरा उससे पितृगणों की उत्पत्ति हो गयी। चौसठ हजार अग्निष्वत्ता पितृगण उत्पन्न हुए। छियासी हजार बर्हिषद पितर हुए और जो दक्ष के शरीर से पसीना गिरा था उससे सर्वगुण-सम्पन्न एक कन्या उत्पन्न हुई, जो मुनियों के भी मन को मोहने वाली थी और जिसका लोक-विख्यात नाम रति हुआ। उसे देख क्रतु आदि भी स्खलित हो गये और उनसे जो वीर्य भूमि पर गिरा उससे अन्य पितरों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार वह सन्ध्या बहुत से पितरों को उत्पन्न करने वाली हुई। इसी समय शिवजी अन्तर्ध्यान हो गये और उनसे वाक्यों से लज्जित मैं कन्दर्प अर्थात् काम से क्रुद्ध हुआ। मेरे क्रुद्ध होते ही काम ने शीघ्र ही अपना बाण खींच लिया और मैं जलती हुई अग्नि के समान जलने लगा। उससे पीड़ित होकर मैंने तथा अन्य ऋषियों और प्रजापति ने काम को शाप दे दिया कि, जा तू शिवजी के बाणों से भस्म हो जायेगा। यह सुन रति का पति कामदेव उसी क्षण अपना धनुष फेंक कर मेरे चरणों पर आ गिरा और पूछा कि आपने मुझे ऐसा कठिन शाप क्यों दे दिया? क्योंकि आप लोग न्याय के अनुसरण करने वाले हैं, मैंने तो आपका कोई बिगाड़ नहीं किया। आपही ने तो कहा था कि मैं ब्रह्मा, विष्णु और शम्भु ये सभी तुम्हारे वश में हैं। जो आपने कहा था, मैंने उसी की परीक्षा की है। हे जगत्पिता, मैं निरपराध हूं। मुझे ऐसा कठिन शाप क्यों देते हैं? ब्रह्माजी ने काम को डांटते हुए कहा कि यह सन्ध्या मेरी कन्या है। इसको तुमने काम से लक्षित किया है। इसी कारण मैंने तुझे शाप दिया है। हे काम, अब तुम शान्त होकर सुन कि जब तुम महादेवजी के नेत्र रूप अग्नि से भस्म हो जाओगे तब फिर शीघ्र ही समान शरीर को प्राप्त करोगे और जब महादेवजी अपना विवाह करेंगे तब तुमको शरीर प्राप्त होगा। काम से ऐसा कह कर मैं लोक पितामह अन्तर्धान हो गया। सब मुनि और कामदेव भी अपने स्थान को चले गये। इति श्रीशिव महापुराण द्वितीय सती खण्ड का तीसरा अध्याय समाप्त। क्रमशः