बारात की यात्रा

             ब्रह्माजी बोले – अब शिवजी ने अपने नन्दी आदि सब गणों को बुलाकर प्रसन्नता पूर्वक अपने साथ चलने की आज्ञा दी। सभी गणराज अपनी-अपनी सेना लेकर चले। सभी प्रधान गणों ने अपने साथ असंख्य-असंख्य और करोड़ों-करोड़ गणों को साथ लेकर विविध रूपों से शंकर जी के विवाह में प्रस्थान किया। सभी गण राज सहस्रों हाथ वाले, जटा-मुकुट धारी, मस्तक पर चन्द्र रेखा धारी, नीलकण्ठ और त्रिनेत्र थे। सभी रुद्राक्ष धारण किये तथा सद् भस्म को धारण करने वाले, हार, कुण्डल, केयूर और मुकुटादि से अलंकृत थे। विष्णु, इन्द्र और मुझ ब्रह्मा के गण अलग ही कान्तिमान और आकाश में उड़ने वाले और कोई पाताल में विचरने वाले तथा कोई सातों स्वर्ग में चलने वाले थे, अधिक क्या कहें, सभी लोक में रहने वाले गण शंकरजी के विवाहोत्सव में सम्मिलित हुए।

             इस प्रकार सब गणों से युक्त शंकर भगवान अपने विवाह के लिए हिमालय के नगर में जा पहुंचे। तब उनको वहां पहुंचा हुआ जानकर शत्रुओं को भयभीत करने वाली चण्डी रुद्र की भगिनी प्रसन्न होकर सप्रेम वहां आयी। प्रेत उसके आसन थे तथा सर्पों के भूषणों से भूषित सिर पर महा कान्तिमान सुवर्ण के कलश को धारण किये हुए थी। उसने अपने करोड़ों गणों के साथ वहां आकर प्रीति पूर्वक कुतूहल और उपद्रव करना आरम्भ कर दिया। उनके पीछे रुद्र के ग्यारह करोड़ प्रिय गण डमरू और भेरी तथा शंखों के शब्द कर रहे थे। जिससे तीनों लोक व्याकुल हो गये। दुन्दुभि के शब्दों से और भी कोलाहल होने लगा, जिससे सारा अमंगल दूर होकर सारा जगत मंगल रूप हो गया। उन सबके पीछे सब देवता उत्साहित होकर चलते थे। उनके पीछे लोकपालों और सिद्धों का समुदाय था तथा उसके मध्य में बड़ा विशाल छत्र धारण किये अपने गणों सहित भगवान विष्णु गरुड़ पर शोभायमान हो रहे थे। उनके साथ वेदों तथा शास्त्रों से मूर्तिमान् मैं भी उस मार्ग में शोभित हुआ। इन्द्र भी अपने गणों सहित ऐरावत पर आरूढ़ नाना प्रकार के आभूषणों से युक्त शोभित थे। उत्कण्ठायुक्त सम्पूर्ण ऋषि भी शिवजी के विवाह में जाते हुए शोभित हो रहे थे।

             इस प्रकार अनेकों भूत, प्रेत, बेताल, ब्रह्मराक्षस, यातुधान और शाकिनी, प्रमथादि, तुम्बरू सहित नारदजी, हाहा, हूहू नामक श्रेष्ठ गन्धर्व और सभी किन्नरगण बड़ी प्रसन्नता से अनेक प्रकार के बाजे बजाते हुए चल रहे थे। सम्पूर्ण जगत की माताएं तथा देवताओं की कन्याएं, गायत्री, सावित्री तथा लक्ष्मी और सम्पूर्ण देवताओं की स्त्रियां शिवजी के विवाह में प्रसन्नतापूर्वक चलीं। इसके साथ शुद्ध स्फटिक मणि के समान उज्ज्वल अत्यन्त सुन्दर बैल पर आरूढ़ भगवान् शंकरजी मार्ग में चलते हुए परम शोभा को प्राप्त हो रहे थे। हे नारद, यह मैंने शिवजी की वर यात्रा कही। अब हिमालय के घर के सुन्दर वृत्तान्त को सुनो।

             इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का चालीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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