पूर्व आख्यान

नारदजी बोले – हे ब्रह्मन, हे महाप्राज्ञ, अब आप मेनिका की उत्पत्ति और पितरों के शाप की भी कथा कहिये।

ब्रह्माजी कहने लगे- हे सुवर्य नारद, अब तुम इन मुनियों के मण्डल में बैठे हुए मेनिका की उत्पत्ति सुनो। मेरा पुत्र जो दक्ष था उसके साठ पुत्रियां हुईं। जिनका विवाह उसने कश्यपादि महर्षियों के साथ कर दिया था। उनमें स्वधा नाम वाली कन्या को उसने पितरों को दिया था जिससे कि धर्ममूर्ति तीन कन्याएं उत्पन्न हुईं। उनमें बड़ी पुत्री का नाम मेनिका, दूरी का नाम धन्या और तीसरी का नाम कलावती था। ये तीनों पितरों के मन से उत्पन्न हुई थीं। इससे ये अयोनिजा मानी गयीं। इनका नाम लेकर मनुष्य सारे लाभ प्राप्त कर लेता है।

ये तीनों जगत वंद्या माताएं हुईं और ज्ञान की निधि तथा तीनों लोकांे में विचरण करने वाली हुईं। हे मुनीश्वर, एक समय ये तीनों बहनें श्वेतद्वीप में विष्णुजी का दर्शन करने गयीं तो वहां बड़ा भारी समाज एकत्रित हो गया जिसमें ब्रह्मपुत्र सनकादिक भी आये और सबने विष्णुजी की स्तुति की और सनकादिकों को देखकर सभी लोग उनके स्वागतार्थ उठ खड़े हुए। परन्तु ये तीनों बहनें उनके सम्मान के लिये न उठीं। क्योंकि शंकरजी की माया ने उन्हें मोहित कर दिया था। शिवजी की बलवती इच्छा। वही प्रारब्ध है और उसके बहुत नाम हैं। सारा जगत् उसके अधीन है। उसी के वश होकर उन तीनों कन्याओं ने भी सनकादिकों को प्रणाम नहीं किया और आश्चर्य में पड़ी हुई केवल बैठी ही रह गयीं। उनके उस दुर्व्यवहार से क्रुद्ध होकर सनकादिकों ने उन्हें दण्डित करना चाहा और योगीश्वर सनत्कुमार ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम तीनों श्रुति की जानने वाली थीं, तुमने अभिमानवश हमें खड़े होकर अभिवादित नहीं किया और नमस्कार भी नहीं किया। अतएव तुम स्वर्ग से दूर जाकर मनुष्य बन जाओ। अब तुम तीनों मनुष्य की स्त्रियां बनो। हम क्या करें? तुम्हारा कर्म ही ऐसा था। अब उसी का फल चखो।

ब्रह्माजी कहते हैं कि, उन तीनों साध्वी बहनों ने चकित होकर ऋषि का वचन सुना और सिर झुका कर उनके चरणांे पर गिरती हुई बोलीं- हे मुनिवर्य, हे दयासागर, इस समय प्रसन्न हो जाइये। हम लोग मूढ़ हैं। इसी से हम लोगों ने आपको प्रणाम नहीं किया। हे महामुने, इसमें आपका कोई दोष नहीं है। अतएव ऐसी कृपा कीजिये जिसमें कि हम स्वर्ग को पुनः प्राप्त कर लें। शिवजी की माया। वह सनत्कुमार पर चढ़ बैठी। अब वह उनके शापोद्धार की बात कहने लगे। उन्होंने कहा- हे पितरों की कन्याओ। अब तुम प्रसन्न होकर मेरे वचनों को सुनो, जिस प्रकार तुम्हें सर्वथा सुख प्राप्त होगा। हिमालय पर्वत हिम का आधार है। यह ज्येष्ठा उसकी कामिनी होगी और इसको पार्वती नाम की एक कन्या प्राप्त होगी। यह दूसरी कन्या धन्या है, जोकि महायोगिनी जनक की पत्नी होगी और जिस महायोगिनी के यहां यह महालक्ष्मी सीता होकर उत्पन्न होगी। कलावती वृषभानु की पत्नी होगी और इस प्रकार द्वापर के अन्त में यही लक्ष्मी उसकी पुत्री प्रिया राधा के नाम से प्रकट होगी। मेनिका को पार्वती जी का वर प्राप्त होगा और वह कैलास तक जायेगी। धन्या जनक वंश में सीता को उत्पन्न कर शीरध्वज के मिलने पर वैकुण्ठ तक जायेगी। कलावती वृषभानु को प्राप्त हो उसके साथ कौतुक क्रीड़ा द्वारा राधा के साथ जीवन्मुक्त हो गोलोक तक जायेगी। इसमें सन्देह नहीं। भला बिना विपत्ति उठाये कहीं किसी की महिमा होती है? अच्छे कर्म वालों का दुःख दूर हो जाने पर उन्हें दुर्लभ सुख प्राप्त होता है। तुम पितरों की कन्या हो, इसलिये तुम्हें स्वर्ग का विलास ही चाहिए। इसलिये जब तुम विष्णुजी के दर्शन करोगी तो तुम्हारा कल्याण होगा। तुम शिवजी में भक्ति करने वाली हो, इससे तुम धन्य और पूज्य हो। मेनिका से पार्वती देवी उत्पन्न हो अपने कठिन तप के द्वारा शिव की प्रिया होगी और धन्या की पुत्री सीता श्रीरामचन्द्रजी की पत्नी होगी तथा कलावती की पुत्री राधा श्रीकृष्ण की पत्नी होगी। ऐसा कह मुनिराज अन्तर्धान हो गये और वे तीनों बहनें भी सुखी हो अपने धाम को चली गयीं।

                      इति श्रीशिव महापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का दूसरा अध्याय समाप्त। क्रमशः

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