पुष्प जलादि धारा-पूजन

ऋषियो ने कहा - हे व्यास जी के शिष्य, हे महाभाग, अब आप यह बतलाइये कि शिवजी की किन-किन फूलों से पूजा की जानी चाहिए और उनके क्या फल हैं?
   सूत जी बोले- हे शौनकादि ऋषियों, यही प्रश्न नारद जी ने ब्रह्माजी से किया था और उन्होंने निर्णय दिया था। ब्रह्मा जी ने यह कहा था कि कमल पत्र, बेल पत्र, शत पत्र तथा शंख पुष्प से देवता का पूजन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। बीस कमल का एक प्रस्थ और सहस्र बेल पत्रों का आधा प्रस्थ होता है। सोलह पल का एक प्रस्थ और दस टंक का एक पल होता है। इस तौल के अनुसार इतना सब तराजू पर चढ़ाकर सकाम पूजे तो सब कामनाओं की प्राप्ति होती है और यदि निष्काम पूजे तो वह शिवरूप हो जावे। यदि कोई दस करोड़ पार्थिव लिंग की पूजा करे तो वह राज्य का इच्छुक राज्य पा सकता है।
   हे मुनीश्वरो, शिवजी को सन्तुष्ट करने के लिये शिवलिंग पर फूल, चावल और चन्दनादि सहित अखण्ड जल की धार चढ़ाकर उनकी पूजा करे। प्रत्येक रूप में प्रति मंत्र से एक बेलपत्र अथवा शतपत्र या कमल चढ़ावे। प्राचीन लोगों ने शंख पुष्पों से विशेष रीति से पूजा करने को कहा है, जो दोनों लोकों में सर्वकाम दायक है। फिर धूप, दीप, नैवेद्य तथा आरती, प्रदक्षिणा और नमस्कार कर क्षमा-विसर्जन करे।
   इस प्रकार की सांगोपांग पूजा भोग और राज्य प्रदायक है। जो अपनी प्रधानता के लिये इसकी आधी पूजा और इससे आधी पूजा मुक्ति के लिये अर्थात् कारागार से मुक्त होने के लिये करता रहे। रोग से मुक्त होने के लिये पचास कमल-पुष्प, कन्या की इच्छा वाला पचीस हजार कमल पुष्प से, विद्या के लिये इससे भी आधे से, वाणी के लिये घृत से, उच्चाटन के लिये उतने ही परिमाण से, मारण में एक लक्ष से, मोहन में उससे आधे से, राजा के वशीकरण के लिये दस लाख फूलों से पूजा करे और इतना ही जप करे। यश के लिये भी इतना ही, ज्ञान के लिये एक करोड़ और शिव दर्शन के लिये इससे आधे से पूजन करे  तथा कार्य फल की सिद्धि के लिये मृत्युंजय का जाप करे, जिसमें पांच लाख जपे तो शिवजी प्रसन्न हो जावेंगे। मुक्ति चाहने वाला कुशा से शिवजी का पूजन करे। एक लाख की संख्या तो सर्वत्र जाने। आयु का इच्छुक एक लाख दूर्वा से और पुत्र का इच्छुक एक लाख फूलों से जिसकी डण्डी लाल हो, लेकर शंकर जी की पूजा करे और तुलसी से पूजे तो भुक्ति-मुक्ति प्राप्त होती है। प्रताप के लिये आक के फूल चढ़ावे। जवा पुष्प से पूजे तो शत्रु का नाश हो और कनेर पुष्प से पूजे तो रोग दूर हों और मनुष्यों को वस्त्र सम्पत्ति की कमी न रहे। हरसिंगार के फूल से पूजे तो सुख-सम्पत्ति बढ़े। राई के फूलों से पूजे तो शत्रु की मृत्यु हो और यदि इसके एक लाख फूल चढ़ा दे तो बड़ा फल प्राप्त होता है। चम्पा और केतकी को छोड़कर सब फूल शिवजी पर चढ़ा सकते हैं अर्थात् केतकी और चम्पा को छोड़कर सभी पुष्प शिवजी को प्रिय हैं।
   अब चावलों के चढ़ाने का प्रमाण और फल सुनो। चावलों को चढ़ाने से लक्ष्मी की वृद्धि होती है किन्तु चावल अखण्डित होना चाहिए और विधिपूर्वक भक्ति से चढ़ाना चाहिए। इसकी भी एक लाख संख्या हो या छः प्रस्थ या तीन प्रस्थ या दो पल होवे। चावल द्वारा प्रधानतः रुद्र को पूजे और उस पर एक सुन्दर वस्त्र शिवजी के ऊपर चढ़ावे। चावल चढ़ाने का यही सुन्दर विधान है। फिर उसके ऊपर एक श्रीफल, गन्ध और पुष्पादि सहित चढ़ाना चाहिए। फिर धूप दीपादि देकर पूजन का फल प्राप्त करे। दो रुपया माशे की संख्या से दक्षिणा दें इसके अलावा यथाशक्ति दक्षिणा देने का भी विधान है।
   इस प्रकार सब अंग सहित मंत्र पूर्वक शिवजी की लक्ष पूजा हो जावे तो बारह ब्राह्मणों को भोजन करावे। यहां पर मंत्र की एक सौ आठ विधियां कही गयी हैं। एक लाख पल तिल चढ़ावे तो महापाप नाश हो। ग्यारह पल अर्थात् चौंसठ मासा एक लाख तिल के बराबर होता है। हित कामना के लिये पूर्ववत् पूजन करे और ब्राह्मणों को भोजन करायें। ऐसा करने से बड़े से बड़े पातक से उत्पन्न दुःखों का शीघ्र ही नाश हो जाता है। एक लाख या आठ प्रस्थ जो चढ़ाने से स्वर्ग और सुख की वृद्धि होती है। इस प्रकार प्रत्येक कार्योंं के लिये प्रत्येक विधि से शिवजी की पूजा करे। ज्वर-प्रलाप की शान्ति के लिये केवल जल की धारा मंगल देती है। इसमें शतरुद्रिय मंत्र, एकादश रुद्र मंत्र, रुद्र जाप, रुद्र सूक्त, षडंग, महामृत्युंजय और गायत्री के अन्त में नमः लगाकर नामों से अथवा प्रणव से अर्थात् ओम् मंत्र से तथा दूसरे शास्त्रोक्त मंत्रों से जल की धारा चढ़ाएं। धारा-पूजन शुभ संतान वर्द्धक है। गुरु से समझ कर करे। यदि अपने घर में नित्य कलह होता हो तो शिवजी पर जल की धारा करे तो सब दुःख विनष्ट हो जाते हैं। यदि शत्रु को तपाना हो तो शिवजी पर तेल की धार चढ़ानी चाहिए। मधु से शिवजी को पूजे तो यक्ष राज हो जावे। ईख के रस से पूजे तो आनन्द मंगल हो। यदि गंगाजी के जल की धार दें तो भुक्ति मुक्ति प्राप्त हो। इसकी दस हजार संख्या का विधान है। ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन करायें। हे मुनीश्वर, आपने जो पूछा वह सब मैंने आप लोगां को सुना दिया, जो लोक में सफल और सर्व कामदायक तथा हितकारी है। जो स्कन्द और उमा सहित शिवजी का सविधि पूजन करता है वह पुत्र पौत्रादिकों के साथ सम्पूर्ण सुखों का भोग कर अन्त में महेश्वर लोक का भागी होता है। वह करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशित विमान पर रुद्र कन्याओं से सेवित होता हुआ प्रलय पर्यन्त शिवजनों के साथ क्रीड़ा करता है। फिर अविनाशी विज्ञान को प्राप्त कर मोक्ष लाभ करता है। 
   इति श्री शिव महापुराण द्वितीय रुद्र संहिता का चौदहवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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