गतांक से आगे...
उन्नीसवां अध्याय
कथा-प्रसंग
पार्थिव शिवलिंग पूजादि और भस्म के प्रकार
ऋषियों ने कहा - हे सूत जी। आप चिरकाल तक जीवित रहें। आप धन्य हैं, जो आपने शिवलिंग महिमा को हमें भली प्रकार समझाया है। क्यों न हो, आप शिव के परम भक्त हैं। अतः पार्थिव महेश्वर की जैसी महिमा आपने श्री व्यास जी से सुनी हो वह सब भी हम लोगों को सुनाइये।
सूत जी बोले- हे ऋषियो। आप लोग सुनें। मैं आपकी भक्ति तथा आदर से प्रसन्न होकर शिव के पार्थिव लिंग की महिमा का वर्णन करता हूं। हे विप्रो, सब लिंगों में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ है। जिसके पूनज से बहुत से लोग सिद्ध हो गये हैं। ब्रह्मा, विष्णु और कितने ही ऋषियों के पार्थिव लिंग के पूजन से मनोरथ पूर्ण हुए हैं। देवता, असुर, मनुष्य, गन्धर्व, सर्प, राक्षस तथा और भी बहुत से शिवलिंग की पूजा कर परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। सतयुग में रत्न का, त्रेता में सुवर्ण का, द्वापर में पारे का और कलियुग में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ हैं। पार्थिव मूर्ति के अनन्य पूजन व तप से भी अधिक फल प्राप्त होता है। जैसे समस्त नदियों में गंगाजी श्रेष्ठ हैं, ऐसे ही सब लिंगों में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ है। जैसे सब मंत्रों में ओंकार ही महान है, ऐसे ही सब लिंगों में पार्थिव श्रेष्ठ, अराध्य और पूज्यनीय है। जैसे सब वर्णों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, सब पुरियों में काशी श्रेष्ठतम है, जैसे सब व्रतों में शिवरात्रि श्रेष्ठ है और जैसे शक्तियों में शैवीशक्ति श्रेष्ठ्र्र्र्र्र्र्र-परा मानी गयी है, वैसे सब लिंगां में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ है। पार्थिव लिंग की पूजा से बढ़ कर किसी अन्य देवता की पूजा तथा स्नान और दानादिक नहीं है। पार्थिव का आराधन पवित्र, पूर्णरूप और धन तथा आयु को बढ़ाने वाला, तुष्टि-पुष्टि व लक्ष्मी का देने वाला तथा कार्य का साधन करने वाला है। जो पार्थिव लिंग की शुभ वेदी का पूजन करता है वह इसी लोक में धनवान् और श्रीमान् होकर अन्त में रुद्र लोक को प्राप्त होता है जो पार्थिव लिंग बनाकर शिवजी का जीवन पर्यन्त पूजन करता है वह शिवलोक का भागी होता है तथा असंख्य वर्षों तक वहां रह कर शिव लोक से लौट भरतखण्ड का राजा होता है। निष्काम भावना से जो नित्य पार्थिव लिंग का पूजन करता है उसे सायुज्य मुक्ति प्राप्त होती है। परन्तु जो ब्राह्मण होकर भी पार्थिव लिग की पूजा नहीं करता वह अत्यन्त दारुण शूल नामक घोर नरक को प्राप्त होता है। लिंग के कई प्रकार हैं। रत्न, सुवर्ण, स्फटिक तथा पार्थिव पुष्पराग से उत्पन्न, किन्तु कोई भी लिंग हो उसे अच्छी तरह बना कर ही पूजन करना चाहिए।
इति श्री शिवपुराण विद्येश्वर संहिता का उन्नीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः