एकाक्षी कुबेर का परिचय

      ब्रह्माजी ने कहा, जब मेरा पहला पद्म कल्प हुआ था तब उसमें मेरे मानस पुत्र पुलस्त्य से विश्रवा का जन्म हुआ जिसके एक वैश्रवण नाम का पुत्र हुआ जिसने अलकापुरी को भोगा और उग्र तप द्वारा शंकर जी की आराधना की। उस समय मेघवाहन कल्प प्रारम्भ हुआ था। तब अलकापुरी-अधीश्वर के उग्र तप को देखकर शंकरजी प्रकट होकर उसे साक्षात् दर्शन देने आये तो उसने कहा-हे शिवजी, आपके अपरिमित तेज से मेरे नेत्र बन्द हो गये हैं, अतः अपने चरण कमलों के दर्शन की सामर्थ्य मेरे नेत्रों को दीजिये। हे मनुशेखर, आपको नमस्कार है, वह यज्ञदत्त का वही पुत्र था जोकि शिवजी की सेवा से अलकापुरी में आकर राजा हुआ था परन्तु जब उसने शिवजी के साथ पार्वतीजी को देखा तो उनके प्रति उसने क्रूर दृष्टि की, इससे उसका बायां नेत्र फूट गया।
     शिवजी ने पार्वती जी से कहा -यह तुम्हारा पुत्र है, तुम्हें क्रूर दृष्टि से नहीं देखता है, किन्तु तुम्हारी तपस्या की प्रशंसा करता है अतः मैं इसे निधियों का स्वामी बनाता हूं। यह गुह्यकों का ईश्र होगा। ऐसा कह कर शिवजी ने उसे धनपति बना दिया और पुनः उमा से मिलाकर यह कह दिया कि आओ, यह तुम्हारी माता हैं। इनके चरणों में प्रसन्न चित्त होकर प्रणाम करो। फिर उमा से कहा कि हे देवेशि, हे तपस्विनी, इस अपने अंगज पुत्र पर प्रसन्न हो। तब जगदम्बा पार्वती प्रसन्न हो यज्ञदत्त के उस पुत्र से बोलीं - हे वत्स, तुम्हारी शिवजी में सर्वदा निर्मल भक्ति हो। परन्तु तुमने जो अपने बायें नेत्र से तिरछे होकर मुझे देखा है इससे तुम्हारा बाया नेत्र तो नहीं रहेगा। किन्तु देव-देव ने तुमको वर दिया है उसके अनुसार तुम कुबेर बन कर रहो। फिर तो महादेवजी ने उसे वैश्वेश्वर नामक स्थान में कुबेर बना कर प्रवेश करा दिया और स्वयं उसकी अलकापुरी नामक महानगरी के समीप में ही अपना कैलास नामक स्थान नियत किया।
     इति श्रीशिवमहापुराण द्वितीय रुद्र संहिता का उन्नीसवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

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