इन्द्र द्वारा प्रेषित कामदेव का शिवजी के पास जाना

             ब्रह्माजी ने कहा- देवताओं से परामर्श कर इन्द्र ने रति सहित कामदेव को बुला कर उसकी बहुत सी प्रशंसा की और तारकासुर से उत्पन्न अपना दुःख कह कर सहायता मांगी। उसने कहा- महाराज, मैं तो आपका मित्र ही हूं। मेरे फूलों के यह पांच कोमल बाण, फूलों का तीन प्रकार का धनुष और भ्रमरों से युक्त यह प्रत्यंचा तथा सुन्दरी स्त्री ही मेरी सेना है और वसन्त मेरा मंत्री है। इस प्रकार मैं पांच बल का देवता हूं और चन्द्रमा जैसा मेरा मित्र है, श्रंृगार ही मेरा सेनापति और हाव-भाव ही मेरे सैनिक हैं। मैं अपने सैनिकों सहित बड़ा कोमल हूं। यह जान कर मुझे जो आज्ञा दीजिये, मैं करूंगा। इन्द्र ने कहा, ब्रह्माजी की आज्ञा है। तारकासुर को मारने के लिऐ शंकरजी से उत्पन्न पुत्र चाहिए। शंकरजी परम तपस्वी हैं। परन्तु वे विवाह नहीं करते, फिर उनसे पुत्र कहां से हो? इसके लिये तुम्हें प्रयत्न करना है। इस समय शंकर जी भगवान् गिरिराज हिमालय पर बैठे हुए परम तप में लगे हुए हैं और पार्वतीजी इन्हें अपना पति बनाने के लिए उनके पास बैठी हुई उनकी सेवा कर रही हैु अतएव जैसे भी जितेन्द्रिय शिव को पार्वती की ओर रुचि हो, तुम वही कार्य शीघ्र करो। इससे तुम्हारा यश स्थायी हो जायेगा।

             यह सुन कामदेव प्रसन्न हो गया। उसने इन्द्र से कहा,मैं उस कार्य को अवश्य करूंगा। ओम् कह कर उसने अपनी स्वीकृति दी। शंकरजी की माया से विमोहित काम ने इस काम को स्वीकार किया। वह अपने सहायकों सहित शीघ्र ही योगीश्वर शंकरजी के पास चला गया, जहां वे अपनी तपस्या में लीन थे।

             इति श्रीशिवमहापुराण तृतीय पार्वती खण्ड का सत्रहवां अध्याय समाप्त। क्रमशः

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *